भैया दूज का त्योहार 29 अक्टूबर को है। यह त्योहार भाई-बहन के प्रेम को समर्पित है। यह त्योहार हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इसे भातृ द्वितीया या भाई द्वितीया भी कहा जाता है। भैया दूज दिवाली का अंतिम उत्सव होता है, यह दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है। यह त्योहार यमराज और उनकी बहन यमुना के इतिहास से जुड़ा है, इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए कामना करती हैं और भाई अपनी बहनों को उपहार आदि देते हैं।
भाई दूज का त्यौहार भाई और बहन के परस्पर और निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भाई अपनी बहन से मिलने उनके घर जाते हैं और उन्हें उपहार देते हैं। बहने अपने भाइयों की समृद्धि और लम्बी उम्र की कामना करती हैं। भाई दूज लगभग देश के सभी हिस्सों में मनाया जाता है।
जानें कब है शुभ मुहूर्त
प्रारंभ 29 अक्टूबर दिन मंगलवार को सुबह 06 बजकर 13 मिनट से हो रहा है, जो 30 अक्टूबर दिन बुधवार को सुबह 03 बजकर 48 मिनट तक है।
भैयादूज की कथा
क्यों मनाते हैं भैया दूज का त्यौहार
सूर्य की संज्ञा से दो संतानें थीं एक पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उसे ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहां से चली गई। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव न था, किंतु यम और यमुना में बहुत प्रेम था। यमराज अपनी बहन यमुना बहुत प्रेम करते थे। लेकिन अतिरिक्त कार्यभार के कारण अपनी बहन से मिलने नहीं जा पाते। एक दिन यम अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने के लिए मिलने चले गए।
यमुना अपने भाई को देख फूले न समाई। भाई के लिए व्यंजन बनाए औऱ आदर सत्कार किया। इस आदर सत्कार औऱ बहन के प्रेम को देखकर यमराज इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने इससे पहले ऐसी आशा भी नहीं की थी। इस खुशी के बाद यम ने अपनी बहन यमुना को विविध भेंट समर्पित की।
यम जब बहन से मिलने के बाद विदा लेने लगे तो बहन यमुना से कोई भी अपनी इच्छा का वरदान मांगने के लिए कहा। यमुना ने उनके इस आग्रह को सुन कहा कि भैया… अगर आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहां आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगे। ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन बहन से तिलक करवाता है उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता।