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हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी में है दुनिया का सबसे ऊंचा पोस्ट ऑफ़िस

पी. चंद |

चलिए आज आप को ले चलते हैं दुनिया के सबसे ऊंचे पोस्ट ऑफ़िस की सैर पर। इसके लिए आप को गंजे पहाड़ों पर क़रीब पांच हज़ार मीटर तक ऊंची चढ़ाई करनी होगी। ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर पैदल चलना होगा। नागिन जैसी बल खाती नदी को पार करना होगा। अगर आप ये सब करने को तैयार हैं। तो चलिए चलते हैं हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी की सैर पर।

स्पीति घाटी धरती पर सबसे ऊंचे ठिकानों में से है जहां इंसान आबाद है। यहां बंजर पहाड़ हैं। बेहद ख़तरनाक पहाड़ी दर्रे हैं और बलखाती नदियां हैं। क़रीब पांच हज़ार मीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर आपको महसूस होगा कि आप पहाड़ी रेगिस्तान में पहुंच गए हैं। किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं।

दुनिया का सबसे ऊंचा पोस्ट ऑफ़िस, हिमाचल प्रदेश, स्पीति घाटी के छोटे से गांव हिक्किम में है। यह पोस्ट ऑफ़िस इसी स्पीति घाटी में बंजर पहाड़ों के बीच स्थित है छोटा सा गांव हिक्किम। इसी गांव में है दुनिया का सबसे ऊंचा डाक खाना। ये पोस्ट ऑफ़िस आस-पास के कई गांवों के लोगों को बाक़ी दुनिया से जोड़ता है। लोग यहां अपनी चिट्ठियां डालने और पैसे जमा कराने आते हैं। बहुत से ऐसे बहादुर सैलानी भी होते हैं, जो यहां आते हैं जो दुनिया के सबसे ऊंचे पोस्ट ऑफ़िस से बाक़ी दुनिया को चिट्ठी के ज़रिए संदेश भेजते हैं।

पिछले कई सालों से इस डाकखाने के पोस्ट मास्टर कहते है कि वो तब से ये पोस्ट ऑफ़िस चला रहे हैं, जब ये 1983 में खुला था।  'ये बहुत मुश्किल काम है। सड़कें हैं नहीं। तो डाक को पैदल ही ढोकर ले जाना पड़ता है। भारी बर्फ़बारी के चलते पोस्ट ऑफ़िस साल के छह महीने तक बंद रहता है।

डाक का अनोखा सफ़र

वाक़ई डाकखाने को चलाना आसान नहीं। दो डाकिये रोज़ाना 46 किलोमीटर पैदल सफ़र करके डाक ले जाते हैं और ये सफ़र न तो सीधा होता है, न आसान। ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ते होते हैं। ढलान पर संतुलन बनाना होता है। चढ़ाव तय करने होते हैं। विशाल चरागाहों से गुज़रना होता है। तब कहीं जाकर ये डाकिए स्पीति घाटी के शहर काज़ा पहुंचते हैं।

काज़ा सड़क मार्ग से राज्य और देश के दूसरे हिस्सों से जुड़ा हुआ है। यही वो आख़िरी प्वाइंट है जो हिक्किम को बाक़ी दुनिया से जोड़ने का काम करता है। यहां से डाक बसों के ज़रिए पहाड़ी सड़कों से होती हुई हिमाचल प्रदेश के दूसरे हिस्सों तक भेजी जाती है और वहां से लाई जाती है।

दुनिया का सबसे ऊंचा पोस्ट ऑफ़िस, हिमाचल प्रदेश, स्पीति घाटी डाकखाने से जुड़ती है दुनिया बर्फ़ीले पहाड़ी रास्तों से होते हुए डाक का ये सफ़र पूरी दुनिया में अनोखा है। हिक्किम का पोस्ट ऑफ़िस चार-पांच गांवों के लिए काम करता है। ये गांव भी बहुत कम आबादी वाले हैं। यहां मोबाइल फ़ोन बमुश्किल काम करता है। इंटरनेट तो है ही नहीं।

हिक्किम डाक खाने से जुड़ा हुआ गांव है कोमिक। ये 4 हज़ार 587 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ये सड़क से जुड़े हुए दुनिया के सबसे ऊंचे गांवों में से एक है। कोमिक में केवल 13 घर हैं। एक स्कूल है। एक पुराना बौद्ध मठ है। खेती लायक़ ज़मीन बहुत थोड़ी-सी है जिसमें जौ और हरी मटर की खेती होती है।

यहां के लोग हैं बड़े दिल वाले

स्पीति घाटी के गांव अक्सर बाक़ी देश से साल के छह महीने कटे रहते हैं। बर्फ़बारी की वजह से सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। सफ़र असंभव हो जाता है। हालांकि इस मुश्किल के बावजूद स्पीति घाटी के लोगों के हौसले क़ायम रहते हैं। जब हम लंगज़ा गांव के एक घर में गए, तो घर की एक महिला ने कहा कि उसकी ज़िंदगी बेहद शांतिपूर्ण है। उसे इन क़ुदरती चुनौतियों से बहुत फ़र्क़ नहीं पड़ता। स्पीति घाटी में बौद्ध धर्म के मानने वाले रहते हैं। भारत के सबसे पुराने बौद्ध मठों में से कुछेक यहां हैं। इनमें से कई मठ तो एक हज़ार साल से भी ज़्यादा पुराने हैं। स्पीति घाटी में स्थित मठ इस घाटी का सबसे बड़ा बौद्ध मठ है। ये मठ स्पीति नदी के किनारे 4 हज़ार 166 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। नदी के इर्द-गिर्द ऊंचे पहाड़ दिखते हैं।

दुनिया का सबसे ऊंचा पोस्ट ऑफ़िस, हिमाचल प्रदेश, स्पीति घाटी, मेल-जोल के ठिकाने मठ हैं। ये बौद्ध मठ स्पीति घाटी की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपरा का अटूट हिस्सा हैं। दुनिया से अलग-थलग इन गांवों के लिए ये मठ मेल-जोल का ज़रिया हैं। जहां वो इकट्ठे होकर प्रार्थना करते हैं। त्योहार मनाते हैं।कोमिक मठ के बौद्ध भिक्षु सदियों पुरानी परंपरा का पालन करते हैं। वो दिन में ध्यान लगाते हैं और लोगों को दुख-सुख बांटने और दरियादिली का पाठ पढ़ाते हैं। ये लोग समंदर पार स्थित पवित्र स्थलों की तीर्थयात्रा पर भी जाते हैं। सफ़र के लिए उन्हें अपना पासपोर्ट और वीज़ा बनवाने में हिक्किम का डाकखाना मदद करता है।

बाहरी दुनिया के लिए खिड़की

भाईचारा, सरल ज़िंदगी, आध्यात्मिक लगाव और मुश्किल माहौल से ताल-मेल बिठाने की आदत की वजह से यहां के लोग सदियों से बड़े आराम से ज़िंदगी बसर कर रहे हैं। उन्हें बाहरी दुनिया से वास्ते की ज़रूरत कम ही पड़ती है। लेकिन, ग्लोबलाइज़ेशन की बयार बहते हुए यहां तक पहुंचने लगी है। रोज़गार की तलाश में इन पहाड़ी गांवों से बहुत से युवा बड़े शहरों और दूसरे देशों में रहने के लिए चले गए हैं।  पर, जो लोग यहां रह रहे हैं। उनके लिए धरती का सबसे ऊंचा डाकखाना आज भी बाक़ी दुनिया से जुड़ने का ज़रिया है।