विश्वभर में स्विजरलैंड के बाद जोगिंद्रनगर एकमात्र ऐसी जगह है जहां पर रोपवे ट्रेन दौड़ती थी। जोगिन्दर नगर में एक नहीं बल्कि दो जगह शानन से बरोट और बस्सी से छपरोट रोपवे ट्रेन चलती थी। लेकिन नेताओं की अनदेखी और इच्छाशक्ति की कमी के चलते दोनों ही जगह यह अपनी दयनीय हालात पर रो रही है। एशिया का सबसे पहला हाइड्रो प्रोजेक्ट जब जोगिन्दर नगर में बना उस वक़्त इन रोपवे ट्रैन का निर्माण कर्नल बैटी ने करवाया था। मंडी जिला मुख्यालय से इस स्थल की दूरी 65 किमी है। बरोट में बांध बनाने के लिए 1926 में अंग्रेज इंजीनियर कर्नल बैटी ने एक रोप-वे ट्रॉली का निर्माण किया। बिना इंजन वाली इस ट्रॉली के जरिए बांध का सारा सामान जोगिन्द्र नगर से बरोट पहुंचाया गया था।
हिमाचल प्रदेश में ये पावर प्रोजेक्ट पंजाब को बिजली मुहैया करवाता है। इस प्रोजेक्ट को बनवाने के लिए ब्रितानियां हकूमत ने खड़ी पहाड़ी पर रेलवे ट्रैक तैयार करवा दिया था। यह रेलवे ट्रैक 75 डिग्री खड़ी पहाड़ी से जब गुजरता है तो इस पर चलने वाली ट्राली में बैठे लोगों की सांसें थमने लग जाती हैं। इस पावर प्रोजेक्ट पर लंबे वक्त से पंजाब और हिमाचल सरकार में खींचतान चली हुई है। शानन परियोजना को स्थापित करने के लिए 3 मार्च, 1925 को तत्कालीन पंजाब सरकार तथा मंडी के राजा के बीच समझौता हुआ था। केंद्र सरकार ने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधानों के अंतर्गत परिसंपत्ति, अधिकारों एवं देनदारियों की नियुक्ति के संबंध में अधिसूचनाएं जारी करते हुए 1 मई, 1967 को शानन पावर हाउस को ग़लत तरीके से पंजाब को दे दिया था।
ये ट्रैक ऐतिहासिक धरोहर घोषित की गई है। जिसके सुधार के लिए इस सांसद से लेकर सरकार तक बड़े-बड़े दावे करते रहे हैं। लेकिन इन रोपवे ट्रेन की तस्वीरें ख़ुद-व-ख़ुद बदहाली को बयां करती है। ऐतिहासिक धरोहर जो पूरे राष्ट्र के लिए एक सम्मान का प्रतीक थी आज वह ट्रेन जंग खा रही है और रोपवे ट्रेक में झाड़ियां उगी पड़ी है जो सरकार को चिढ़ाती नज़र आती है।