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हिमाचल में राजपूत नेतृत्व तो ब्राह्मण नेतृत्व निर्माता!

समाचार फर्स्ट |

वैसे तो हिमाचल में जातीय समीकरण का कोई राजनीतिक महत्व नहीं है। फिर भी हिमाचल राजनीति में यह अहम रोल अदा करती है। दोनों पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी टिकट आबंटन के वक्त जातीय पहलू को ध्यान में रखकर कैंडीडेट्स का चुनाव करती हैं। 2011 के जनगणना के अनुसार, हिमाचल की कुल जनसंख्या 68,56,509 है। जिसमें से 17,29,252 अनुसूचित जाति ( 25.22%), 3,92,126 अनुसूचित जनजाति (5.71%) और 9,27,452 (13.52%) ओबीसी  के लोग है।  

प्रदेश की शेष जनसंख्या अप्पर कास्ट की है जो कि जनसंख्या का 50.72 प्रतिशत है और दूसरी कम्यूनिटी के 4.83 प्रतिशत है। हिमाचल के इस 50.72 जनसंख्या में से 32.72 प्रतिशत राजपूत और 18% ब्राह्मण है। हिमाचल की विधानसभा की 68 सीटों से 20 सीटें रिजर्व है जिसमें से 17 अनुसूचित जाति और 3 अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व है।

राजपूत नेतृत्व

हिमाचल में पहली बार हुए चुनाव से लेकर अब तक राजपूत समुदाय का प्रभाव रहा है। हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार जिन्होंने 4 बार शासन किया था, राजपूत समुदाय से थे। ठाकुर राम लाल, प्रेम कुमार धूमल का सम्बंध राजपूत समुदाय से है। अब तक प्रदेश में पांच में से 4 मुख्यमंत्री राजपूत समुदाय से हुए है। वीरभद्र सिंह, जिन्होंने 6 बार ( लगभग 22 साल तक) हिमाचल में राज किया राजपूत समुदाय से है। इसके साथ ही बीजेपी के शांता कुमार, जिन्होंने दो बार 1977 से 80 और 1990 से 1992 में प्रदेश का नेतृत्व किया ब्राह्मण समुदाय से थे।

प्रदेश की लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में राजपूतों की बाहुल्य जनसंख्या है। पर मंडी, शिमला, कुल्लू, हमीरपुर और कांगड़ा में इनकी संख्या काफी ज्यादा है। रोचक बात ये है कि दोनों दलों कांग्रेस और बीजेपी के पार्टी प्रेजिडेंट भी  राजपूत या तो ब्राह्मण समुदाय से है । तो वहीं प्रदेश कांग्रेस प्रमुख सुखविंदर सिंह सुक्खू  और प्रदेश बीजेपी प्रेजिडेंट सतपाल सिंह सत्ती भी राजपूत है।

ब्राह्मण नेतृत्व

हिमाचल में राजपूत और अनुसूचित जाति के बाद  ब्राह्मण तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है। जिससे कई प्रभावशाली नेता निकल कर सामने आए है। हिमाचल के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री शांता कुमार,  केन्द्रीय टैलिकॉम मंत्री सुखराम, पूर्व केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ,  केन्द्रीय स्वास्थय मंत्री जेपी नड्डा इसके उदाहरण है।

जेपी नड्डा को इस बार बीजेपी की तरफ से सीएम के तौर पर फ्रंटरनर माना जा रहा है। वहीं सुखराम और उनके बेटे अनिल शर्मा ने भी बीजेपी को ज्वाइन कर लिया है। प्रदेश में ब्राह्मण का रोल राजा निर्माता का रहा है। शांता कुमार, जिसकी दो सरकारें अपना कार्यकाल पूरा न कर सकीं, को छोड़ कर कोई भी ब्राह्मण नेता हिमाचल में शासन नहीं कर पाया।