जिला मुख्यालय हमीरपुर से दूरी लगभग 7 कि.मी. की दूरी पर ग्राम पंचायत देई का नौण के गांव घुमारड़ा की में किसान ने मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना से खेतों में फिर उगाकर फसल रूपी सोना पैदा कर रहा है। यहां का किसान बंदर, जंगली खरगोश, सांभर आदि के कहर से खेती-बाड़ी से दूर होता जा रहा था। जिन खेतों में कभी बढ़िया गेहूं और मक्की उगती थी, वहां केवल पशु चारा जैसे जौई, बरसीम उगाने को किसान मजबूर थे। उसे भी यह जानवर तबाह कर देते थे। बेसहारा पशुओं ने उनकी समस्या और बढ़ा दी थी। ऐसे में मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना के अंतर्गत सौर बाड़बंदी यहां के जागरूक किसानों के लिए वरदान बन कर आई है। जंगली जानवरों के उत्पात के कारण लगभग डेढ़ दशक से बंजर और खाली पड़ी गांव की जमीन आज फसलों से खूब लहलहा रही है।
गांव के किसान और पूर्व सैनिक मस्तराम ने बताया कि उन्हें कृषि विभाग के माध्यम से इस योजना के बारे में जानकारी मिली और उन्होंने सौर ऊर्जा चालित बाड़बंदी के लिए आवेदन किया। उनकी जमीन 8 कनाल व सात कनाल के दो हिस्सों में नाले के आर-पार स्थित है। लगभग दो वर्ष पूर्व दोनों हिस्सों की बाड़बंदी के लिए विभाग से सम्पर्क किया। इस पर लगभग चार लाख रुपए व्यय हुए जिनमें से मस्तराम को केवल 80 हजार रुपए का खर्च ही वहन करना पड़ा और शेष राशि अनुदान के रूप में प्रदेश सरकार की ओर से अदा की गई। दो वर्ष तक बाड़बंदी के रखरखाव व मरम्मत की गारंटी संबंधित कंपनी द्वारा दी गई।
शून्य लागत प्राकृतिक खेती से प्रेरणा ले रसायनिक खादों को कहा अलविदा
बाड़बंदी के उपरांत अब 15 कनाल की उनकी जमीन फिर से फसल रूपी सोना उगाने लगी है। गत दो सालों में वे अपने खेतों से लगभग 10 क्विंटल गेहूं, सात क्विंटल मक्की और लगभग तीन क्विंटल धान की फसल विभिन्न फसल चक्र में प्राप्त कर रहे हैं। मस्तराम के बेटे राजकुमार भी पूर्व सैनिक हैं और खेती-बाड़ी में अपने पिता का हाथ बंटा रहे हैं। उन्होंने कृषि प्रशिक्षण शिविरों के दौरान शून्य लागत प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की और उसी के अनुरूप गौमूत्र खेतों में कीटनाशकऔर गोबर केंचुआ खाद के रूप में उपयोग में ला रहे हैं। उनका दावा है कि गत दो सालों से उन्होंने रासायनिक खादों का उपयोग पूरी तरह से बंद कर रखा है।
सौर सिंचाई योजना से खेतों को मिला निर्बाध जल
जागरूक किसानों में शुमार मस्तराम ने प्रदेश सरकार की एक अन्य महत्वकांक्षी सौर सिंचाई योजना के अंतर्गत सिंचाई सुविधा के लिए भी एक वर्ष पूर्व आवेदन किया। उन्होंने खेतों के समीप ही तीन अश्व शक्ति (हॉर्स पावर) का सोलर पैनल स्थापित किया, जिससे तीन फेस विद्युत उत्पादन हो रहा है। इस सोलर पैनल पर लगभग तीन लाख रुपए व्यय किए गए। इसमें मस्तराम को 10 प्रतिशत भाग के रूप में केवल मात्र 26 हजार रुपए ही वहन करने पड़े और शेष अनुदान राशि प्रदेश सरकार की ओर से दी गई।
खेतों में भू-जल स्तर अच्छा होने से उन्होंने एक कुआं भी कृषि विभाग के सहयोग से यहां निर्मित किया है। इस पर 70 हजार रुपए की अनुदान सहायता उन्होंने प्रदेश सरकार की ओर से प्रदान की गई और डेढ़ लाख रुपए स्वयं वहन किए। मस्तराम का कहना है कि इससे उनकी सिंचाई संबंधी चिंता का समाधान हुआ है और हर मौसम में खेती के लिए निर्बाध जल उपलब्ध है। सौर ऊर्जा चालित सिंचाई योजना निर्मित होने के बाद उन्होंने स्प्रिंकलर विधि से खेतों की सिंचाई प्रारंभ की है जिससे पानी की भी बचत हुई है। अच्छी धूप के अतिरिक्त छांव में भी यह योजना लगातार कार्य करती रहती है। मस्त राम ने इस तरह की योजनाएं संचालित करने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और प्रदेश सरकार का आभार जताते हुए कहा कि सभी किसान इनका लाभ अवश्य उठाएं। इससे कृषि उत्पादन बढ़ा है और किसान दोबारा खेती की ओर मुड़ रहा है।
दूसरों के लिए बने प्रेरणा
सन् 1971 के युद्ध में सीमा पर अपनी वीरता का लोहा मनवाने वाले मस्तराम 60 फीसदी दिव्यांगता के बावजूद बुलंद हौसले और उन्नत तकनीक के कारण अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा स्रोत रहे हैं। उनके खेतों की हरियाली से प्रोत्साहित मस्तराम के भाई मंगत राम ने भी अब सौर बाड़बंदी के लिए आवेदन कर दिया है।