हिमाचल प्रदेश के सिरमौर और ऊपरी शिमला में प्राचीन काल से लोग सांचा विद्या पर लोग भरोसा करते है। इस विधा का प्रचलन अब प्रदेश- देश भर में बढ़ रहा है। प्राचीन ग्रंथ भटाक्षरी और पाबुची लिपि जिन्हें हिंदी में सांचा नाम से जाना जाता है। आधुनिकता के इस दौर में भी सांचा विद्या और पाबूची लिपी की 350 पांडूलीपियों का अध्ययन कर आज भी याचक को फलादेश बताया जाता हैं।
पाबूची विद्या ज्योतिष के माध्यम से किसी जातक के भविष्य निर्माण और कुंडली निर्माण संबंधि फलादेश और नक्षत्रों को अध्ययन करने की विद्या है। इनमें जन्म के समय स्थान और अंक्षाश निकाले जाते हैं। उसके बाद विशोतरी महादशा और योगनी महादशा निकाली जाती हैं। इसके बाद नवांश चक्र का निर्माण होता है।
पंडित आत्मा राम जो कि 15 साल से सांचा विद्या के द्वारा लोगों को उनके ग्रह गोचर के बारे में बताते हैं उनका कहना है कि सांचा विद्या उनका खानदानी काम है। जिसको उनकी 7 पुश्तों से किया जा रहा है। इससे देव दोष, पितृ दोष और अन्य गतिविधियों के बारे में पता लाकर उनका सात्विक विधि से उपाय बताए जाते हैं।
उनका कहना है कि इन सब का निर्माण करने के बाद एक किताब या जिसे सांचा कहते हैं। उसके द्वारा फलादेश बताया जाता है। यह शेर के दांत या बारह सिंगा के सिंग से बना होता है। यह चार कौनों वाला होता है। चारों कौनों पर अलग-अलग संख्याओं में अंक खुदे होते हैं। इस किताब या सांचा को मृगशाला के उपर रखा जाता है। जिससे फलादेश की गणना की जाती है।