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प्रदेश के सबसे शिक्षित जिला हमीरपुर में एक साल में 30 के पार पहुंचा आत्महत्या का आंकड़ा

रमित शर्मा |

खुद का जीवन नष्ट करने की स्थिति को खुदकुशी (आत्महत्या) कहा जाता है। आत्महत्या के विचार आने की समस्या से पीड़ित व्यक्ति को खुद का जीवन नष्ट करने के विचार आने लगते हैं, इसके साथ-साथ इस दौरान उसको डिप्रेशन और बिहेवियर बदलाव भी महसूस होने लगते हैं। खुदकुशी का विचार आना एक सामान्य समस्या है और ज्यादातर लोग इसे तब महसूस करते हैं, जब वे तनाव या डिप्रेशन से गुजर रहे होते हैं।

आत्महत्या का किसी व्यक्ति की संपन्नता या विपन्नता से कोई संबंध नहीं है। इन दिनों तो हर आयु वर्ग में भी आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। आए दिन हम ऐसी खबरें पढ़ते-देखते हैं कि किसी परेशानी में आकर परिवार के सदस्यों ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली या फिर किसी व्यक्ति विशेष ने आत्महत्या की या फिर उसने इसका प्रयास किया। सबसे शिक्षित जिला हमीरपुर में तनाव और पारिवारिक झगड़ों ने दर्जनों परिवार बर्बाद कर दिए हैं। एक वर्ष के भीतर हमीरपुर में आत्महत्या का आंकड़ा 30 से अधिक पहुंच गया है। जो कि चिंता का विषय बन गया है।

इस वर्ष जिले के दो चिकित्सकों और हमीरपुर मेडिकल कॉलेज की स्टाफ नर्स ने आत्महत्या कर अपनी इहलीला समाप्त की है। हमीरपुर जिला के रहने वाले एक एमबीबीएस चिकित्सक ने भी इसी साल अपने कमरे में आत्महत्या की थी। जबकि, बीते माह हमीरपुर में तैनात स्टाफ नर्स मोनिका ने भी अपने किराए के कमरे में फंदा लगाकर जान दी है। अब बुधवार रात को आयुर्वेदिक चिकित्सक ने मौत को गले लगा लिया और हमीरपुर के उपमंडल भोरंज में भी 16 वर्षीय नावालिगा ने भी अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली अधिकतर मौत के कारणों के पीछे पारिवारिक झगड़े रहे हैं।

वहीं, कुछेक में तनाव और अन्य कारण सामने आए। कुछेक ने आशिकी में प्यार के छूटने और कुछेक ने नशे की गिरफ्त में आकर मौत को गले लगा लिया। आत्महत्या की वजह ढूंढने और ऐसे मामलों पर रोक के लिए सरकार को कोई उचित कदम उठाने होंगे। शिक्षाविदों के सुझाव स्कूली बच्चों के मनोवैज्ञानिक परीक्षण और काउंसलिंग पर भी आए दिन सामने आए हैं। जिस पर अब गंभीरता से सोचने का समय है।

उधर, पुलिस अधीक्षक हमीरपुर अर्जित सेन ठाकुर ने कहा कि आत्महत्या के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए उचित कदम उठाने की आवश्यकता है। तनाव और अन्य कारणों की खोज कर समस्या का समाधान होना चाहिए।