हिमाचल के हमीरपुर के रहने वाले अंकुश कुमार अपने घर वापस लौट आए हैं। अंकुश सियाचीन के -40 डिग्री बर्फीले मौत के तूफान से फंस गए थे जिसके बाद उन्होंने यहां डटकर मुकाबला करते हुए बहादुरी का परिचय दिया है। अंकुश बड़सर ग्राम पंचायत घंगोट के टघेण गांव से सबंध रखते हैं। अंकुश को सही सलामत घर लौटे देखकर परिजन और दोस्त काफी खुश हैं।
अंकुश कुमार 20 अक्टूबर ,2017 को 19 साल की आयु में देश की सेवा करने के लिए 6 डोगरा में भर्ती हो गया। उसकी ड्यूटी 14 अगस्त, 2019 को 3 माह के लिए सियाचीन ग्लेशियर में लगा दी, लेकिन 18 नम्बर, 2019 को आये बर्फीले तूफान की चपेट में 6 डोगरा के 6 जवान और दो सिविलियन फंस गए। इसमें बड़सर का अंकुश और पंजाब का एक जवान छाती के बल 2 घण्टे तक बर्फ के बीच पड़े रहे। रेस्क्यू टीम ने दोनों को बचा लिया जबकि इस तूफान की चपेट में आकर 4 जवान और दो सिविलियन शहीद हो गए।
बुरी तरह घायल अंकुश और साथी जवान को हेलिकॉप्टर के जरिये मिलिट्री अस्पताल भर्ती करवाया गया जहां उनका डेढ़ महीने तक उपचार चला। अंकुश के पिता जो खुद डोगरा रेजिमेंट में वर्तमान में कार्यरत हैं ने बताया कि उन्हें अपने वेटे के सकुशल लौटने की ख़ुशी है। बर्फीले तूफान में शहीद हुए जवानों की आत्म शांति की प्रार्थना करते हैं। उन्होंने बताया कि अंकुश की उम्र अभी 21 बर्ष है। अंकुश के दादा बाबू राम भी डोगरा रेजिमेंट से रिटायर्ड हुए हैं। अंकुश की माता पुष्पा देवी ने अपने वेटे के ठीक होने के लिए माता ज्वालाजी से मन्नत मांगी थी।
अंकुश कुमार अभी भी पूरी तरह स्वास्थ्य नहीं हुआ है। उसके शरीर में अभी भी घाव हैं। पिता नीरज कुमार ने बताया कि उन्हें अपने वेटे पर गर्व है। हमारे परिवार के लोग देश की सेवा और तिरंगे की शान के लिए अंतिम सांस तक लड़ने वाले हैं। हमारी तीसरी पीढ़ी आर्मी में जाकर देश की सेवा कर रही है। भारतीय सेना ने अभी अंकुश को छुट्टी पर घर भेजा है। अंकुश की बहादुरी को देखते हुए भारतीय डोगरा रेजिमेंट ने उनका नाम मेडल के लिए आगे भेज दिया है। अब अंकुश पठानकोट में ड्यूटी देंगे। हैरानी की बात है कि अभी तक बड़सर के लाल से मिलने के लिए न तो कोई प्रशासनिक अधिकारी पहुंचे हैं और न ही कोई नेता।