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आज से हेरिटेज ब्रिज के नाम से जाना जाएगा मंडी का ऐतिहासिक विक्टोरिया ब्रिज

नवनीत बत्ता |

मंडी के ऐतिहासिक विक्टोरिया ब्रिज को आज से इतिहास और भविष्य ते पन्नों में हेरिटेज ब्रिज के नाम से जाना जाएगा। शुक्रवार को ऐतिहासिक विक्टोरिया ब्रिज को हेरिटेज ब्रिज का दर्जा दिया गया। विक्टोरियो ब्रिज प्रदेश का पहला ऐसा ब्रिज है जिसकी पूजा अर्चना हुई और हेरिटेज बनने पर स्थानीय लोगों द्वारा जश्न मनाया गया। 8 दिसंबर को नए पुल का उद्धाटन होने से इस पुल पर वाहनों की आवाजाही को बंद कर दी गई है। डीसी मंडी ऋग्वेद ठाकुर ने बताया कि इस पुल को अह टूरिज्म की दृष्टि से विकसित किया जाएगा।

बता दें कि इस पुल का निर्माण अंग्रेजों की हकुमत के दौरान 1877 में किया गया था। यह पुल इंग्लैंड में बने विक्टोरिया पुल की डुप्लीकेट कॉपी बताया जाता है। यही कारण है कि इसे अंग्रेजों ने विक्टोरिया पुल का नाम दिया जबकि मंडी रियासत ने इसे विजय केसरी पुल का नाम दिया था।

एक वो दौर था जब राजा अपना शौक पूरा करने के लिए कुछ भी कर देते थे और एक आज का दौर है जब जरूरतों को पूरा करने के लिए भी वर्षों लग जाते हैं। आज हम आपको शौक और जरूरत की दो अलग-अलग दास्तां बताएंगे। पहले बात इतिहास के पन्नों से शौक की। बात 1877 से पहले की है जब मंडी रियासत के राजा विजय सेन हुआ करते थे। देश पर अंग्रेजों की हकुमत थी और जार्ज पंचम ने दिल्ली में एक समारोह का आयोजन किया जिसमें देश भर की रियासतों के राजाओं को बुलाया गया। मंडी रियासत के राजा वियज सेन भी इसमें शामिल होने दिल्ली गए। समारोह के दौरान वहां पर जार्ज पंचम ने कार को लेकर प्रतियोगिता करवाई। प्रतियोगिता के अनुसार घोड़ों और कार के बीच रेस लगवाई गई।

इनाम में जीती कार को चलाने के लिए राजा ने बनवाया था पुल

मंडी के राजा विजय सेन के घोड़े ने कार को पछाड़ते हुए जीत हासिल की। ऐसे में जार्ज पंचम ने शर्त अनुसार राजा वियज सेन को कार ईनाम में दे दी। लेकिन कार को मंडी लाना संभव नहीं था और अगर ले भी आते तो यहां पर उसे चलाना कहां था क्योंकि उस दौर में सड़कों और पुलों की कोई व्यवस्था नहीं होती थी। राजा वियज सेन ने ब्रिटिश हकुमत से मंडी शहर को जोड़ने के लिए एक पुल बनाने का आग्रह किया। उन्होंने राजा के आग्रह को स्वीकार करते हुए पुल बनाने का वादा किया। राजा ने इसके लिए एक लाख रूपए भी अदा किए। 1877 में पुल बनकर तैयार हो गया। यह पुल इंग्लैंड में बने विक्टोरिया पुल की डुप्लीकेट कॉपी बताया जाता है। यही कारण है कि इसे अंग्रेजों ने विक्टोरिया पुल का नाम दिया जबकि मंडी रियासत ने इसे विजय केसरी पुल का नाम दिया था। राजा ने इनाम में जीती कार को दिल्ली में खुलवाकर, पुर्जे-पुर्जे अलग करवाकर मंडी पहुंचाया और फिर यहां पर उसकी सवारी का आनंद उठाया।

इतिहासकार कृष्ण कुमार नूतन बताते हैं कि विक्टोरिया पुल बनने के बाद मंडी रियासरत की राजधानी को नई पहचान मिली। पुरानी मंडी और मंडी के बीच आवागमन आसान हुआ और विकास ने रफ्तार पकड़ी। हालांकि यह पुल छोटी गाड़ियों के बनाया गया था लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब इस पुल से रोजाना भारी भरकम ट्रक और बसें गुजारी गई। जब तक भ्यूली पुल नहीं बना था पठानकोट जाने वाले सभी वाहनों के लिए इसी पुल का इस्तेमाल किया जाता था। ब्रिटिश हकुमत के जिन इंजीनियरों ने इसका निर्माण किया था। उन्होंने इसकी आयु 100 वर्ष बताई थी, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 141 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह पुल आज भी उसी शान के साथ खड़ा है जैसा अपने शुरूआती दौर में था। न तो पुल के रस्से बदले गए और न ही कोई अन्य सामग्री। हां, समय-समय पर इसकी मुरम्मत जरूर की गई। लेकिन पुल की मजबूती बताने के लिए इसके निर्माण के बाद के वर्षों की गिनती ही काफी है।

100 साल बताई थी पुल की लाइफ

अब बात जरूरत की कर लेते हैं। विक्टोरिया पुल को आज से करीब 41 वर्ष पहले पूरी तरह से भारमुक्त हो जाना चाहिए था। जब इसकी आयु 100 वर्ष हो गई थी उससे पहले ही इसके समानांतर एक और पुल का निर्माण करके इसे हैरिटेज के रूप में सहेज दिया जाना चाहिए था, क्योंकि यह जरूरत थी। लेकिन यह जरूरत पूरी हुई वर्ष 2015 में यानी आज से 3 वर्ष पहले। 3 वर्ष पहले विक्टोरिया पुल के समानांतर एक अन्य पुल की आधारशिला रखी गई।

यह डबल लेन पुल विधायक प्राथमिकता के तहत 25 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा है। सदर के विधायक अनिल शर्मा के प्रयासों से इसका निर्माण कार्य शुरू हो पाया था लेकिन लाजमी है कि जब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का सीधा संबंध मंडी जिला से है तो ऐसे में इस पुल को ना सिर्फ भाजपा सरकार ने समय से पहले तैयार कर दिया बल्कि अब इस पुल पर जहां वाहनों की आवाजाही को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। वहीं आज पूजा अर्चना के साथ इसे हेरिटेज विक्टोरिया पुल का दर्जा भी दे दिया गया।