जिला कुल्लू में हर विधा के लोक गीत प्रचलित हैं। संयोग और वियोग गीत, घटना प्रधान गीत, वीर रस गीत, संस्कार गीत आदि। गांव में हर कार्य संयुक्त रूप से किया जाता है। एक-दूसरे के काम में हाथ बंटाने का कार्य पुण्य माना जाता है। जंगल से लकड़ी लाना, लकड़ी की कटाई, फसल की बिजाई, घास की कटाई, धान की रोपाई आदि अनेक ऐसे काम हैं। जो ग्रामीण एक-दूसरे की सहायता से करते हैं। इस प्रकार के श्रम युक्त कार्य को लोग हंसी-खुशी से ढोल, नगारे एवं गायन के साथ करते है। श्रम गीत गाए जाते हैं।
इसी कड़ी में भाषा एवं संस्कृति विभाग जिला कुल्लू द्वारा श्रमगीतों पर परिचर्चा एवं गायन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता छेंरिग दोरजे जी ने की। उन्होंने कहा कि कुल्लू और लाहौल में समान रूप से श्रम गीत गाए जाते रहे हैं। दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें डॉ सूरत, डॉ दयानन्द गौतम, छेरिंग दोरजे, हीरा लाल, आई. एस. चांदनी, श्री शेरसिंह राणा, दीपक कुल्लवी, धनेश गौतम, सरला चम्बयाल, बालक राम, सत्यपाल भटनार, जयदेव विद्रोही, भगवान प्रकाश, शेर सिंह, प्रताप सिंह, टीकम राम, फिरासत खान, शिव चन्द पॉल, इन्दु भारद्वाज, हीरा लाल अदि ने चर्चा एवं गायन में भाग लिया। डॉ सूरत ठाकुर ने कहा कि कुल्लू में सामूहिक रूप से बड़े-बड़े कार्यों को निपटाने की परम्परा रही है। ये सामूहिक रूप से वाद्ययन्त्रों की धुन के साथ गीत गाते हुए किए जाते हैं। इन गीतों में हेसरू गीत, गूघती गीत, हाउली गीत आदि प्रमुख है। हीरा लाल ठाकुर ने कहा कि धान रोपते हुए भी महिलाएं श्रम गीत गाती हैं। इससे कार्य करते हुए मनोरंजन भी होता है। डॉ दयानन्द गौतम जी ने बताया कि शारीरिक श्रम से संबंधित गीत श्रम गीत कहलाते हैं। ये गीत कई तरह के कार्यों से जुड़ हुए होते थे।