हिमाचल की सर्द हवाओं में चुनावी मौसम गर्म है। सभी पार्टियां जीत की हुंकार भर रही हैं। हर उस मुद्दे को तवज्जो दी जा रही है जिससे वोटरों को लुभाया जा सके। रोजगार की बात हो या फिर शिक्षा,बिजली,सड़क पानी…सभी नेताओं और पार्टियों का ध्यान इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित है। लेकिन, इन सभी मुद्दों के बीच एक ऐसा मुद्दा भी है जिसे कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा। और वो मुद्दा है प्रदेश से होता पलायन।
राज्य सरकारें इस पलायन को रोकने के लिए बिल्कुल नाकाम साबित हुई हैं। इस बार पार्टियां स्थानीय मुद्दों पर कम और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में ज्यादा व्यस्त हैं। इसी बीच दोनों पार्टियां इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दे रहीं।
युनिस्को की 2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल के हर परिवार से एक व्यक्ति किसी दूसरी जगह रिलोकेट हो जाता है। जिसका प्रतिशत अब 6 से बढ़कर 20 हो गई है। लोगों के दूसरी जगह माइग्रेट करने में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा , बिहार और झारखंड से भी आगे है। हिमाचल के 1000 घरों से 306 प्रति व्यक्ति रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। वहीं उसके बाद हरियाणा में 275 व्यक्ति, उत्तर प्रदेश में 266 व्यक्ति, बिहार में 223 और झारखंड में 223 प्रति व्यक्ति दर है। भारत के 315 मिलियन माइग्रेट्स में 30 प्रतिशत माइग्रेट होने वाली जनसंख्या युवाओं की है।
बीते सालों में पलायन की रफ्तार और भी तेजी से बढ़ी है। अभी ये आंकड़े 2013 के हैं। लिहाजा, 2017 में यह आंकड़ा किस कदर होगा इसका अंदाजा बाखूबी लगाया जा सकता है। हिमाचल में बेरोजगारी एक बड़ा मसला है। प्रदेश में उद्योग और रोजगार के संसाधन भी सीमित है। ऐसे में अगर पलायन के क्षेत्र में हिमाचल अव्वल है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आश्चर्य इस बात का है कि राजनेता इस भयावह होती स्थिति पर थोड़ा भी ध्यान नहीं दे रहे हैं।