जिला बिलासपुर से संबध रखने वाले अजय रतन बने किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत, प्राइवेट कंपनी में मैकेनिकल इंजीनियर का पद छोड़ अपनायी प्राकृतिक खेती, रसायनिक खाद की जगह गौमूत्र और गोबर के जरिये जीवा अमृत और घना अमृत का इस्तेमाल कर मशरूम की कर रहे जमकर पैदावार तो स्थानीय किसानों को भी प्रशिक्षण देकर मशरूम की खेती के जरिये बना रहे आत्मनिर्भर।
बिलासपुर के नियो गांव के अजय रतन ने एक सीमेंट कंपनी में असिस्टेंट इंजिनियर का पद छोड़ प्राकृतिक खेती का रुख किया है। जी हां अजय रतन ने प्राकृतिक खेती के माध्यम से ना केवल खुद मशरूम की पैदावार कि है। बल्कि आस-पास के कई किसानो को भी प्राकृतिक खेती के गुणों से अवगत करवाते हुए मशरूम की खेती से आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रहे है। केंद्र की मोदी सरकार जहां प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान के माध्यम से किसानों को रासायनिक खेती को छोड़ प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ने का सन्देश दे रहे है तो वहीं हिमाचल प्रदेश में भी कई किसान ऐसे है। जो की प्राकृतिक खेती को अपनाकर अपनी आमदनी को बढ़ाने का काम कर रहे है. वहीं बिलासपुर के नियो गांव के रहने वाले अजय रतन ने देसी गाय के मलमूत्र व गोबर से जीवा अमृत व घना अमृत बनाकर इसका इस्तेमाल मशरूम की पैदावार के लिए कर रहे है जिससे ना केवल मशरूम की उपज बढ़ी है बल्कि बाजार में डिमांड भी ज्यादा है।
बिलासपुर से करीब 50 कि.मी. दूर स्थित एक छोटे से गाँव नियो के रहने वाले अजय रतन ने मकेनिकल इंजीनियरिंग कर एक सीमेंट कंपनी में 12 सालों तक बतौर असिस्टेंट इंजिनियर काम किया मगर उनका जुड़ाव मिटटी से था जिसके चलते उन्होंने अपनी प्राइवेट नौकरी छोड़ प्रकृतिक खेती की ओर रुख किया और प्राकृतिक खेती को अपनाकर मशरूम की खेती करने लगे. आज अजय रतन ने अपने घर पर ही मशरूम की खेती शुरू कर दी है और लगभग 400 पैकेट में मशरूम की पैदावार कर रहे है।
वहीं, मशरूम की खेती के सम्बंध में जानकारी देते हुए अजय रतन ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र बरठीं में उन्होंने मशरूम की खेती के सम्बंध में प्रशिक्षण प्राप्त किया है जिसके बाद उन्होंने बड़े पैमाने पर मशरूम की खेती शुरू की है. वहीं मशरूम की खेती के लिए वह रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं बल्कि देसी गाय के गोबर व मलमूत्र से बनाये गए जीवा अमृत व घना अमृत सहित नारियल का बुरादा और फंगस को खत्म करने के लिए खट्टी लस्सी के साथ ही ब्रह्नास्त्र व अग्निशत्र का इस्तेमाल करते है जिससे रासायनिक खाद व पदार्थों के इस्तेमाल से होने वाली बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है जबकि मशरूम की ज्यादा डिमांड होने से उन्हें मुनाफा भी ज्यादा हो रहा है.
केंद्र सरकार के प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान के सपने को साकार करने के लिए अजय रतन ना केवल खुद प्राकृतिक खेती करते है बल्कि किसानो को भी जागरूक करने का काम कर रहे है. प्राकृतिक खेती के जरिये मशरूम की बेहतरीन पैदावार के लिए अजय रतन ने आस-पास के गांव के कई किसानों को प्रशिक्षित किया है ताकि प्राकृतिक खेती को अपना कर किसान अपनी आय को बढ़ा सके और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सके।