जेबीटी एंड डीएलएड प्रशिक्षित बेरोजगार संघ ने जेबीटी कमीशन में एनसीटीई की अधिसूचना के मुताबिक बीएड को शामिल करने का कड़ा विरोध किया है। इसी फैसले के खिलाफ बुधवार को जेबीटी प्रशिक्षु सड़कों पर उतरे और उन्होंने जमकर नारेबाजी करते हुए फैसले पर विरोध जताया। प्रशिक्षुओं ने रोष रैली निकालने के बाद डीसी ऑफिस में भी जोरदार प्रदर्शन किया। इसके बाद जिला प्रशासन के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन भी भेजा। संघ का कहना है कि एनसीटीई की 28 जून 2018 की अधिसूचना के मुताबिक 50 फीसदी अंकों के साथ स्नातक और बीएड को जेबीटी के पदों पर नियुक्ति के फैसले और हाईकोर्ट में कुछ बीएड अभ्यर्थियों की उस याचिका का विरोध किया है, जिसमें उन्होंने जेबीटी के पदों पर अस्थाई रूप से आवेदन किया है।
उन्होंने तर्क समेत इसका विरोध करते हुए कहा कहा कि जेबीटी को प्राथमिक स्तर पर सभी विषय पढ़ाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। जबकि बीएड प्रशिक्षु कोई दो विषय पढ़ा सकते हैं। वहीं जेबीटी और बीएड के पाठयक्रमों में भारी अंतर है। जेबीटी प्रशिक्षु की न्यूनतम योग्यता 12वीं पास जबकि बीएड की ग्रेजुएट है। जिसे यह चींटी और हाथी के बीच मुकाबला करवाने जैसा होगा। दूसरी ओर आधी भर्ती पहले ही बैच वाइज करवाई जा चुकी है। शेष पदों पर कमीशन 12 मई 2019 को हमीरपुर बोर्ड द्वारा करवाया जा चुका है। जिसमें करीब 6 हजार जेबीटी टैट पास और करीब 28 से 30 हजार बीएड डिग्री धारकों ने जेबीटी कमीशन की परीक्षा दी। जबकि राज्य सरकार के भर्ती और पदोन्नति नियमों में भी अभी तक बीएड वालों के लिए जेबीटी में कोई स्थान नहीं है। ऐसे में भर्ती के बीच इन नियमों को तोड़ना भी न्याय संगत नहीं है।
वहीं, बीएड प्रशिक्षु अभी तक जेबीटी टैट पास नहीं कर सके हैं। न ही जेबीटी टैट के लिए बीएड कोई योग्यता है। फिर भी यदि उन्हें जेबीटी कमीश्न में भाग लेने का मौका दिया जा रहा है तो यह टैट पास जेबीटी प्रशिक्षुओं के साथ अन्याय है और उनके अधिकार का हनन है। उन्होंने कहा कि एनसीटीई की 28 जून 2018 की नोटिफेकेशन में कहा गया है कि कक्षा 1 से 5 तक पढ़ाने के लिए अध्यापक के रूप में नियुक्ति पर विचार किया जाएगा। इसमें केंद्र सरकार राज्य सरकार को बाध्य भी नहीं कर सकती। यह नियम उन राज्यों को देख कर बनाए गए थे। जिन राज्यों में जेबीटी प्रशिक्षुओं की संख्या बेहद कम थी, जबकि मांग बेहद अधिक थी, जबकि हमारे प्रदेश में ऐसी कोई स्थिति नहीं है।
उन्होंने कहा कि इस समय प्रदेश में 18 से 20 हजार के बीच जेबीटी प्रशिक्षु बैठे हैं। ऐसे में अब राज्य सरकार को विचार करना होगा कि बीएड प्रशिक्षुओं को जेबीटी के साथ टैट और कमीशन में बैठने देना न्याय संगत कतई नहीं है। जेबीटी प्रशिक्षुओं को अलग से दो साल प्रशिक्षण दिया जाता है, जबकि बीएड प्रशिक्षुओं को अलग है। ऐसे में अगर बीएड प्रशिक्षुओं को समान अधिकार प्राप्त होते हैं तो सरकार द्वारा जेबीटी प्रशिक्षुओं को अलग से प्रशिक्षण देने का कोई लाभ नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का नवंबर 2017 का वह फैसला भी याद दिलाया, जिसमें कहा गया था कि उच्च योग्यता रखने वाले अभ्यर्थी निम्न योग्यता वाले अभ्यर्थी के साथ किसी भी रूप में परीक्षा में मान्य नहीं होंगे।
संघ कहा कि 12 मई 2019 को हमीरपुर बोर्ड द्वारा जेबीटी कमीशन के लिए ली गई परीक्षा में करीब 3 हजार आवेदकों ने भाग लिया था, बोर्ड बीएड डिग्री धारकों को पात्र न मान कर उन्हें उस परीक्षा के परिणाम में शामिल न करे। 10 अक्टूबर 2019 को दिल्ली सरकार ने भी बीएड डिग्री धारकों को प्रवेश करवाने से इनकार कर दिया था। जबकि 17 दिसंबर को बिहार सरकार ने भी जेबीटी-डीएलएड अभ्यर्थियों को प्राथमिकता देते हुए उनके भविष्य को सुरक्षित किया। इसी साल जनवरी में मध्य प्रदेश सरकार ने भी जेबीटी को प्राथमिकता दी, जबकि पश्चिम बंगाल सरकार ने पहले से ही जेबीटी को प्राथमिकता दे रखी है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि उनके पक्ष ध्यान में रखते हुए 20 हजार जेबीटी प्रशिक्षुओं को इंसाफ दिया जाए। शिक्षा विभाग को इस संबंध में उचित दिशा निर्देश दें।