कृषि उपनिदेशक डॉ राज पाल शर्मा ने जिला में गेहूं की फसल में पीला रतुआ की आशंका से निपटने के लिए निगरानी समिति का गठन किया है। समिति में कृषि विशेषज्ञ और कृषि प्रसार अधिकारियों को शामिल किया गया है। कृषि के ये जानकार किसानों के खेतों में जाकर पीला रतुआ के संबंध में गेहूं की फसल की जांच कर रहे हैं। डॉ राजपाल ने बताया कि मौजूदा समय में प्रदेश के निचले हिस्सों में पीला रतुआ का प्रकोप देखने को मिल रहा है। इस रोग की फरवरी माह में अधिक संभावना रहती है। तापमान में वृद्धि के साथ यह बीमारी बढ़ती है। ये रोग सामान्यत गेहूं की अगेती व पछेती फसल को अधिक प्रभावित करता है। इस रोग में पतों पर फन्फुदी-फफोले पड़ जाते है जो बाद में बिखर कर अन्य पतियों को भी ग्रसित करते हैं।
डॉ वर्षा ने रोग के लक्षण पर चर्चा करते हुए बताया कि पीला रतुआ की अवस्था में पत्तियों पर पीले रंग की धारियों के रूप में दिखाई देता है, जिनसे हल्दी जैसा पीला चूर्ण निकलता है। इस रोग के कारण सिकुड़े दाने पैदा होते हैं और पैदावार में भारी कती आती है। तापमान में बढ़ौतरी के कारण मार्च के अंत तक पत्त्यिों की पीली धारिंया काले रंग में बदल जाती हैं। उन्होंने बताया हालांकि अभी तक जिला के विभिन्न भागों में फसल का निरीक्षण करने पर किसी प्रकार का रतुआ गेहूं में नहीं पाया गया है। जिला के लिए यह शुभ संकेत है। कृषि उपनिदेशक ने जिला के किसानों से आग्रह किया है कि फसल में पीला रतुआ की आंशका में तुरंत नजदीकी कृषि प्रसार अधिकारी से सम्पर्क करें। इसके अलावा किसान प्रोपिकोनाजोल 60 मिली लीटर दवाई 60 लीटर पानी में घोल के एक बीघा में इसका छिड़काव करें। उन्होंने कहा कि यह दवाई विभाग के सभी विक्रय केन्द्रों पर उपलब्ध है।