विपक्षी नेताओं के मुख्यमंत्री पर दिए गए बयानों को गैर जिम्मेदाराना बताते हुए बीजेपी विधायक ने आलोचना की। सवाल करते हुए हमीरपुर से विधायक नरेंद्र ठाकुर ने कहा कि वो ये बतायें कि उनका मुख्यमंत्री कौन है? कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वो लोग कांग्रेस के सिवा किसी और दल को राजनैतिक पार्टी ही नहीं मानते। वीरभद्र सिंह के अलावा किसी और को मुख्यमंत्री ही नहीं स्वीकारते।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में इस तरह की सोच न केवल आपत्तिजनक है बल्कि पूरी तरह से अलोकतांत्रिक भी है। कांग्रेस सहित सभी विरोधियों को अब यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिये कि जयराम ठाकुर सारे हिमाचल सहित कांग्रेसियों के भी CM हैं, क्योंकि यही सच है। सरकार और मुख्यमंत्री किसी पार्टी का न होकर सारी जनता का होता है। इसलिये संवाद में तल्खियों की जगह नहीं होनी चाहिये। जनता से जुड़े मसलों पर निर्णय लेते समय सरकार कभी भी पार्टी विचारधारा के स्तर पर भेदभाव नहीं करती।
नरेंद ठाकुर ने कहा कि प्रदेश के इतिहास में सत्ता परिवर्तन होते ही लंबे समय तक 'बदला-बदली' का दौर रहा है। प्रदेश में सत्ता पक्ष के लोगों द्वारा विपक्षी दलों से जुड़े नेताओं सहित अन्य लोगों के ख़िलाफ़ बदले की भावना से कार्य करने की संस्कृति विकसित हो चुकी थी। लेक़िन जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनते ही इस प्रवृत्ति पर रोक लगी है। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार ने सत्ता में आने के बाद विपक्षी दलों सहित सारे हिमाचल की जनता को अपना माना। यही वजह है कि हिमाचल में लंबे समय तक चलने वाला 'बदला-बदली' का अध्याय ख़त्म हुआ है।
नरेंद्र ठाकुर ने कहा कि मौजूदा सरकार ने 'हिमकेयर स्वास्थ्य योजना' में अभी तक साढ़े 66 हज़ार लोगों को लाभ देते समय उनकी पार्टी नहीं पूछी। 'सीएम हेल्पलाइन' और 'जनमंच' में समस्याओं को लेकर आये लोगों से भी पार्टी आधार पर कभी भेदभाव नहीं किया। प्रदेश में 3 लाख गैस कनेक्शन देते समय और साढ़े 3 लाख वरिष्ठ नागरिकों को पेंशन योजना का लाभ देते समय भी पार्टी मेम्बरशिप का ब्यौरा नहीं मांगा। सरकार और सीएम पर भेदभाव के आरोप लगाने से पहले कांग्रेस के नेताओं को इन आंकड़ों पर गौर कर लेना चाहिये।
भाजपा विधायक ने इस बात को ज़ोरदार तरीके से दोहराया कि मौजूदा मुख्यमंत्री ने भेदभाव की जगह प्रदेश में लंबे समय से चल रहे 'बदला-बदली' के अध्याय को जड़ से खत्म किया है। इसलिये कांग्रेस सहित तमाम विरोधियों को उनसे सीख लेनी चाहिये। लोकतंत्र में शत्रुता को कोई जगह नहीं होती, इसलिये विपक्ष को चाहिये कि वो सत्ता पक्ष से मिलजुल कर लोगों से जुड़े मुद्दों के निराकरण में अपनी सार्थक भूमिका अदा करें। निरर्थक बयानबाजी लोकतांत्रिक मूल्यों के लिये कभी भी लाभकारी नहीं कही जा सकती है।