हिमाचल प्रदेश के चकौता धारक किसानों ने सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया दिया है। प्रदेश के पांच जिलों (ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर, सोलन और शिमला की सुन्नी तहसील) के सैंकड़ों चकौता धारक किसान जमीन के मालिकाना हक की लड़ाई को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। चकौता धारक किसान 1992 से जमीन के मालिकाना हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा दोंनो सरकार ने ही किसानों की इस मांग पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है जिस वजह से किसान फिर से सड़कों पर है।
चकौता धारक किसानों ने शिमला में ने बड़ी रोष रैली निकाली और सरकार पर जमकर हमला बोला। जमीन का मालिकाना हक न होने की वजह से किसान सरकार की योजनाओं का भी लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। किसानों ने मांग पूरी न होने पर भविष्य में कुछ अप्रत्याशित कदम उठाने की सरकार को चेतावनी भी दी है।
उन्होंने बताया कि जमीन का मालिकाना अधिकार न होने कारण उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। 1970 से जमीन पर काम कर रहे है और अब सरकार कह रही है कि ये आपकी जमीन नहीं। किसान अब कंहा जायेगा इतनो सालों तक मां की तरह जमीन की देखभाल की है और परिवार का गुजारा भी इसी जमीन से चल रहा है। मालिकाना हक न मिलने से कई सरकारी योजनाओ से भी किसानों को महरूम रहना पड़ रहा है। किसान अब मामले को लेकर आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार है ।
इन्होंने इससे पहले भी सचिवालय और विधानसभा घेराव कर जमीन के मालिकाना हक़ की मांग की थी जिस पर सरकार ने गौर करने का आश्वाशन दिया था। लेकिन किसानों को अभी जमीन का मालिकान हक़ नहीं मिला मजबूरन किसान आंदोलन की राह पर है। गौरतलब है कि पंजाब से हिमाचल अलग राज्य बनने पर उस समय सीमावर्ती और भूमिहीन किसानों को सरकार ने चकौता आधार पर कुछ बीघा जमीन दी थी लेकिन उसका मालिकाना नहीं दिया।