स्वास्थ्य विभाग द्वारा विभिन्न रोगों की रोकथाम के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की समीक्षा के लिए डीसी कार्यालय में बैठक का आयोजन किया गया। एडीसी की अध्यक्षता में जिला क्षय निवारण समिति, टीबी फोरम, एचआईवी इश्यू सहित कुल चार बैठकें आयोजित की गई। बैठक में सीएमओ जिला कांगड़ा डॉ गुरदर्शन गुप्ता सहित अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे।
एडीसी ने कहा कि टीबी के साथ कुछ और भी इश्यू होते हैं, जो कि मौत का कारण बनते हैं, उन पर भी चर्चा की गई। प्रदेश को वर्ष 2021 तक टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है, ऐसे में इस पर विस्तृत चर्चा की गई। हर विभाग द्वारा एक्टिस केस फाइंडिंग की जा रही है, जिस पर चर्चा की गई। टीबी मरीजों को पेश आने वाली दिक्कतों के बारे में पूछा गया है और कैसे उन दिक्कतों को हेल्थ सिस्टम में सुधार से दूर किया जाता है।
एडीसी जिला कांगड़ा राघव शर्मा ने कहा कि एचआईवी के बारे में भी बैठक में जानकारी दी गई कि जिला में 8 सेंटर हैं, जहां एचआईवी केसिस की कन्फर्मेशन होती है। लोगों से अपील है कि एचआईवी टेस्टिंग के लिए आगे आएं। 90 फीसदी लोगों को यह पता होना चाहिए कि उन्हें एचआईवी है या नहीं, इसको लेकर राष्ट्रीय स्तर पर लक्ष्य तय किया गया है। लोग इसमें आगे आकर टेस्ट करवाएं। जिससे यदि किसी में यह पाया जाता है। तो उनका समय पर उपचार शुरू किया जा सके।
एडीसी जिला कांगड़ा राघव शर्मा ने कहा कि टीबी रोग का उपचार बीच में छोड़ दिया जाए तो बिगड़ जाता है। जिन परिवारों में टीबी या एचआईवी के मरीज हैं, वो इसे स्टिगमा की तरह न लें, क्योंकि यह बीमारियां ऐसी हैं, जिनका उपचार संभव है। उपचार के सिस्टम में ऐसे मरीजों को लाना जरूरी है। पंचायत प्रतिनिधियों व जनता से हमारा आग्रह है कि ऐसे मरीजों से भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसे मरीजों को स्वास्थ्य सिस्टम तक पहुंचाने के लिए काउंसलिंग की जानी चाहिए।
एडीसी ने कहा कि कांगड़ा में 1253 मरीज एचआईवी से ग्रस्त हैं। जिनका उपचार चल रहा है। जिन मरीजों को एचआईवी होता है उन्हें टीबी भी हो जाता है। इसलिए इस रोग के डबल इम्पेक्ट को ट्रेस करने का प्रयास किया जा रहा है कि जिन्हें टीबी है। उन्हें एचआईवी तो नहीं है तथा जिन्हें एचआईवी है तो उन्हें टीबी तो नहीं है। जिससे हमें इस इम्पेक्टस की वास्तविक स्थिति पता चल सके। एचआईवी में इम्यूनिटी कम होती है तो सबसे पहले टीबी के लक्षण बढ़ते हैं।