देश भर में होली का त्योहार जहां 10 मार्च को मनाया जाएगा। वहीं, जिला कुल्लू में होली उत्सव शुरू हो गया है। कुल्लू में बैरागी समुदाय द्वारा होली गीतों की शुरुआत कर दी गई है और ब्रज की बोली में ही होली गीत गाए जा रहे हैं। आज आधुनिकता की इस दौड़ में कई परंपराएं समाप्त हो रही हैं। लेकिन जिला कुल्लू में दशकों पुरानी होली गायन की परंपरा को आज भी वैरागी समुदाय ने संजोय रखा है। वैरागी समुदाय के लोगों की ओर से बसंत पंचमी से होली तक गायन करते हैं और विशेष रूप से होली के गीत गाए जाते हैं। इसी कड़ी में कुल्लू में वैरागी समुदाय की ओर से होली गायन का आयोजन किया गया, जहां पर वैरागी समुदाय के लोगों ने होली गीत गाकर खूब रंग जमा रहे है।
बैरागी समुदाय द्वारा 'शिवों के संग भोले नाथों के संग होरी खेलन जाऊं', 'मैं कैसे होरी खेलूं सांवरिया जी के संग रंग में', 'वन को चले दोनों भाई सखी री कोई मोड़ लिया', 'आया फागुन महीना सजन तेरे बिन कियां खेले होरी तेरे नाल', 'मैं न लड़ी थी शाम निकस गयो' होली गीतों गाए गए। यह परंपरा कुल्लू में करीब 350 साल से अधिक पुरानी है। इसे वैरागी समुदाय ने आज भी संजोकर रखा है। वैरागी समुदाय के लोगों ने कहा कि अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ के मंदिर में होली तक हर दिन वैरागी समुदाय की ओर से होली गायन के साथ होली खेली जाएगी। इसके साथ ही हनुमान मंदिर महंतबेहड़ में भी होली गायन किया जा रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि होली गायन के माध्यम से ब्रज भाषा मे होली के गीत गाये जा रहे है और भगवान रघुनाथ के मंदिर में भी भक्तों द्वारा भजन किया जा रहा है। गौर रहे कि देश भर में होली उत्सव जहां 10 मार्च को मनाया जाएगा। वही, कुल्लू में 2 दिन पहले ही लोग रंगों से खेलना शुरू कर देंगे। कुल्लू जनपद में वैरागी समुदाय की ओर से होली गायन की परंपरा है। इसमें खास बात यह है कि वैरागी समुदाय के बुजुर्गों से लेकर युवा भी होली गायन ब्रज की भाषा में करते हैं। यह फिल्मी गीतों से कोसों दूर है।