जिला कुल्लू के क्षेत्रीय अस्पताल में नशा निवारण केंद्र में भी नशा छोड़ने वाले युवक काफी संख्या में पहुंचे हैं। आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि कर्फ्यू के दौरान जहां अस्पतालों में ओपीडी की संख्या काफी कम रही वहीं सिर्फ एक ओपीडी ऐसी थी जहां रोजाना काफी संख्या में मरीज आते रहे।
नशा निवारण केंद्र में सिर्फ दो महीने में ही 30% से अधिक युवाओं की संख्या दर्ज की गई। जिसमें शराब, भांग, अफीम, नशीली दवाइयां लेने वाले युवक शामिल थे। इतना ही नहीं पहली बार विदेशी भी नशा छोड़ने की चाह में नशा निवारण केंद्र में अपना पंजीकरण करवाने पहुंचे। रोजाना उनकी काउंसलिंग भी की जा रही है, ताकि वे दोबारा से नशे की ओर ना बढ़ सके और सही इलाज के माध्यम से इन युवाओं से नशे की बुरी आदतों को भी खत्म किया जा रहा हैं।
प्रदेश में दिल्ली और अन्य राज्यों से हेरोइन के साथ-साथ कई और नशीली दवाएं पहुंच रही थी, लेकिन कर्फ्यू लगने के बाद बाहरी राज्यों में नशा कारोबारियों का आना जाना बंद हो गया। जिसके चलते नशों में डूब चुके युवाओं को नशे की तलब ने आखिर नशा निवारण केंद्र पहुंचा दिया। जहां वह अब अपना इलाज करवा रहे हैं।
नशा निवारण केंद्र कुल्लू के प्रभारी डॉ. सत्यव्रत वैद्य का कहना है कि नशा निवारण केंद्र से जाने के बाद युवा नशे से कितना दूर रहते हैं। यह चीज इस बात पर भी निर्भर करती है कि वह भूले-भटके अगर नशा कर भी ले तो वह तुरंत इस बात की सूचना अस्पताल में करें। इस बात में कोई दोराय नहीं है कि हिमाचल में नशे की लत युवाओं को बावरा बना रही है। समय पर नशे की डोज ना मिलने पर वे आत्महत्या और चोरी जैसी घटनाओं को भी अंजाम देने से गुरेज नहीं करते, लेकिन नशेड़ी युवाओं को लाइन पर लाने के लिए लॉकडाउन और कर्फ्यू ने मील के पत्थर का काम किया है।