शिमला के अंतरराष्ट्रीय रामपुर लवी मेले का इतिहास 335 साल पुराना है। यह मेला हर तरह के व्यापार के लिए मशहूर है। हर साल अरबों रुपए का कारोबार लवी मेले में होता है। मेले में लोगों को अपनी जरूरत की वस्तुएं खरीदने का अवसर मिलता है। इस मेले में खासकर ऊनी कपड़े, पीतल के बर्तन, औजार, बिस्तर, मेवे, शहद, सेब, न्योजा (चिलगोजा) सूखी खुमानी, अखरोट, ऊन और पशम आदि का कारोबार होता है। लवी का मेला सतलुज के किनारे बसे रामपुर में आयोजित किया जाता है।
लोइया से पड़ा था लवी मेले का नाम:
लवी का नाम लोइया से पड़ा था। पहाड़ों पर एक पारंपरिक कोट (ऊनी वस्त्र) पहना जाता है, इसे लोइया कहा जाता है। मध्य शताब्दी में तत्कालीन बुशहर रियासत के राजा केहरी सिंह के समय यह मेला शुरू हुआ था। उस समय मेले में तिब्बत, अफगानिस्तान के व्यापारी यहां कारोबार करने आते थे। वहां के व्यापारी ड्राईफ्रूट, ऊन, पशम लेकर रामपुर पहुंचते थे। इसके बदले वे लवी मेले से अपने लिए राशन, नमक और गुड़ खरीद कर ले जाते थे।
ऐतिहासिक लवी मेले का समय के साथ स्वरूप भी बदल गया है। अब मेले में तिब्बत और ही अफगानिस्तान से व्यापारी पहुंचते हैं। वर्तमान में मेले में किन्नौर के अलावा पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों के व्यापारी ही कारोबार करने पहुंचते हैं। इसमें सांस्कृतिक संध्याएं भी आयोजित की जाएंगी।
लवी मेले को 1985 में मिला अन्यराष्ट्रीय मेले का दर्जा:
335 साल पुराने रामपुर लवी मेला वर्ष 1985 में अंतरराष्ट्रीय स्तर का घोषित किया गया। वर्ष 1983 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद वीरभद्र सिंह ने 1985 में लवी मेले को अंतरराष्ट्रीय मेला घोषित किया था। तब से लेकर आज तक मेले के वैभव एवं स्तर को बरकरार रखने के लिए सरकार प्रयासरत है।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम:
अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस गृह रक्षा विभाग के करीब 300 से ज्यादा जवान तैनात रहेंगे। सीसीटीवी कैमरों की मदद से भी विभिन्न क्षेत्रों में नजर रखी जाएगी। मेले के दौरान ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने के लिए वाहनों की एक तरफा आवाजाही होगी। 11 नवंबर से शुरू होने वाले लवी मेले के दौरान सुरक्षा और ट्रैफिक व्यवस्था बनाए रखने को लेकर नोगली से लेकर खनेरी तक चप्पे चप्पे पर पुलिस के जवान तैनात रहेंगे। मेला मैदान और स्कूल मैदान में भी पुलिस का कड़ा पहरा रहेगा।