जिला ऊना के 1 सितंबर 1972 को अस्तित्व में आने से पहले औऱ आजादी से पहले राजपुर जसवां एक बहुत बड़ी रियासत और जनपद बसा करती थी। राजपुर जसवां के राजा रघुनाथ सिंह ने राजपुर जसवां के जटिल और दुर्गम भूगोलिक पहाड़ियों में बसे इस क्षेत्र से मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत से पहले ही पलायन कर दिया।राजा रघुनाथ के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपने जनपद राजपुर जसवां में पानी की भारी किल्लत थी। एक पुरानी कहावत: नीरस जीवन ,बुरा पानी बगैर राजपुर जसवां! जल्दी सुखी जीवन करने ,ऐत्थी नी बसणा!!"खड़ी घट्टियां दा पाणी परणा,राजपुरे दी मिट्टी। मेरे प्यारे बाबुला,मिन्जों राजपुरे मत व्याही दिंदी।।" से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि राजपुर जसवां में कोई भी अपनी बेटी की शादी पानी की भारी कमी के चलते यहां नहीं करना चाहता था।
राजा रघुनाथ सिंह जी ने भी मूलभूत सुविधाओं का टोटा होने से राजपुर जसवां से सदैव के लिए अंब के लिए पलायन कर लिया। राजा ने होशियारपुर पंजाब के अंब में अपनी नई रियासत स्थापित की। राजा रघुनाथ सिंह के वंशजों राजा लक्ष्मण सिंह और अन्तिम शासक राजा चैन सिंह ने अम्ब को ही विकल्प चुना। आजादी उपरान्त अम्ब उपमंडल तहसील मुख्यालय जिला ऊना तो विकास की मुख्यधारा से जुड़ता गया किन्तु प्राचीन राजपुर जसवां से लोगों का अन्यत्र पलायन पूर्ववत जारी रहा।
आज वर्तमान परिपेक्ष्य में भी राजपुर जसवां विकास की बाट जोह रहा है। अम्ब तहसील से 10 किलोमीटर दूर ज्वार नामक गांव से राजपुर जसवां की दूरी लगभग सात किलोमीटर दूर चिंतपूर्णी का अत्यंत पिछड़ा क्षेत्र माना जाता है। यहां पर सड़कों, जनस्वास्थ्य सिंचाई का आज भी स्थिति अनुकूल नहीं है। आज भी राजाओं के समय के पुराने महल खंडहर बन नजर आते हैं। कुछ पुराने पुश्तैनी मकान आज भी मौजूद हैं।
इस दुर्गम भूगोलिक पहाड़ियों में बसे स्थल में आज भी जन जीवन अस्त-व्यस्त ही नजर आता है। यहां पर सड़कों व परिवहन व्यवस्था बदहाली का शिकार है। शैक्षणिक समग्रता हेतु राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय ज्वार ही प्रमुख शिक्षण संस्थान हैं। हालांकि राजपुर जसवां के मिडल स्कूल को हाई स्कूल स्तरोन्नत करने की प्रक्रिया चली हुई है। लम्बा शैल, राजपुर जसवां में प्राथमिक विद्यालय संचालित है। पानी की प्रचुरता की कमी के चलते खेतावाड़ी आज भी प्रभावित हो कर जस की तस बनी हुई है।
यहां राजपुर जसवां में राजाओं की कुलदेवी माता का भव्य मंदिर आज भी विद्यमान है। जसवाल राजपूत आज भी यहां नतमस्तक होकर धार्मिक आदान-प्रदान व प्रतिवर्ष विशाल भंडारे का आयोजन करवाते हैं। सरकार की नजरें इनायत हो तो प्राचीन राजपुर जसवां को आधुनिक धार्मिक पर्यटन स्थल और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की गतिविधियों से जोड़ा जा सकता है। यहां के प्राचीन किलों का जीर्णोद्धार अथवा पुरातत्व धरोहर हेतु संरक्षण व संवर्द्धन किया जाना नितांत आवश्यक है। सैलानियों के लिए प्राचीन रियासत राजपुर जसवां एक बहुत बड़ी सैरगाह भी इजाद करवाई जा सकती है। भाषा एवं संस्कृति विभाग जिला ऊना को धार्मिक सांस्कृतिक महत्व के प्राचीन किलों का संरक्षण अवश्य ही करवाना चाहिए ताकि इस विरासत को संजोया जा सके।
राजपुर जसवां के ग्रामीणों को आशा जगी है कि रियासती राजधानी क्षेत्र और वर्तमान में चिंतपूर्णी विधानसभा क्षेत्र का बड़ा गांव राजपुर जसवां का सर्वांगीण कायाकल्प अवश्य होगा। तथापि राजपुर जसवां में रियासत कालीन विकास का ग्रहण टूट कर आधुनिकता की विकासवादी धारा का यहां नया सूत्रपात होगा। राजपुर जसवां गांव के ग्रामीणों को हिमाचल प्रदेश सरकार, विधानसभा चिंतपूर्णी के माननीय विधायक व जिला प्रशासन ऊना से यहां सभी मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध करवाने की चिर प्रतीक्षित दरकार है।