हिमाचल में कृत्रिम गर्भाधान और संकरण के कारण एक भी देसी गाय नहीं बची है। अधिक दूध की चाहत और पैसे कमाने के चक्कर में हमने देसी गाय से संकरण को बढ़ावा दिया है। इसके कारण अब देवभूमि में शुद्ध देसी गाय की नस्लें गायब हो गई हैं। अब हम जिन्हें देसी गाय के नाम से पुकारते हैं, वे वास्तव में संकरित नस्ल की गाय हैं। इनके जींस में कुछ हिस्सा देसी गायों का भी है। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित सम्राट ललितादित्य व्याख्यानमाला के दौरान माइक्रोबायोलॉजिस्ट एसएस कंवर ने ये बात कही।
ब्राजील जैसे देशों में बची हैं शुद्ध देसी गाय
उन्होंने कहा कि भारतीय नस्ल की शुद्ध देसी गाय अब ब्राजील जैसे देशों में बची हैं। देश में गुजरात जैसे कुछ इक्का-दुक्का प्रदेशों में ही अब शुद्ध भारतीय नस्ल की गाय का अस्तित्व है। भारतीय नस्ल की गाय का विलुप्त होना इसलिए अधिक दु:खदायी है, क्योंकि दुनिया में इनकी और इनसे पैदा होने वाले दूध की भारी मांग है।
जर्सी गाय के दूध से फैलती हैं बीमारियां
उन्होंने बताया कि देसी नस्ल की गाय ए-2 श्रेणी का दूध देती हैं। इस दूध को स्वास्थ्य के लिहाज से सर्वोत्तम माना जाता है। जर्सी गाय ए-1 श्रेणी का दूध देती है, जिससे कैंसर और टीबी जैसी खतरनाक बीमारिया फैलती हैं। भारतीय परंपराएं वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं। दुर्भाग्यवश इन परंपराओं को हमने वैज्ञानिक दृष्टि से समझने का प्रयास नहीं किया।
वर्तमान पीढ़ी परंपराओं को मानती है पिछडे़पन का प्रतीक
इसी कारण वर्तमान पीढ़ी परंपराओं को पिछडे़पन का प्रतीक मानकर उनसे किनारा कर रही है। भारत को प्रकृति ने अनोखी जैविक समृद्धि प्रदान की है और इस समृद्धि को संरक्षित कर ही भारत महाशक्ति बन सकता है। उन्होंने उपस्थित शोधार्थियों और विद्यार्थियों से इस जैविक समृद्धि को संरक्षित करने का आग्रह किया।
इस मौके पर व्याख्यानमाला के संयोजक डॉ. जयप्रकाश सिंह, डॉ. भजहरिदास, डॉ. कुलदीप शुक्ल भी उपस्थित रहे।