18 जनवरी को जब डॉ राजीव बिंदल विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी छोड़कर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बने उस वक़्त बिंदल ने कभी नहीं सोचा होगा कि 4 माह के भीतर ही उन्हें पद से इस्तीफ़ा देना पड़ेगा, वह भी भ्रष्टाचार जैसे लांछन लगने के बाद" , मई माह में कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग में हुए पीपीई किट घोटाले के छींटे डॉ राजीव बिंदल के दामन तक ऐसे पहुंचे की उन्हें 27 मई को पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल से उस वक़्त इस्तीफ़ा ज़बरन लिया गया या देना पड़ा ये अब भी सियासी गलियारों में दफन राज है। क्योंकि इस इस्तीफ़े को नैतिकता के आधार पर दिया गया इस्तीफ़ा बताया गया। जिसे आलाकमान ने तुरंत स्वीकार भी कर लिया। लेकिन इस इस्तीफ़े ने बिंदल का सब कुछ छीन लिया। उनके इस्तीफ़े के तीन माह बाद अब विजिलेंस ने डॉ बिंदल को क्लीनचिट दे दी है। यानी कि स्वास्थ्य विभाग घोटाले में डॉ बिंदल की संलिप्तता नहीं पाई गई।
ऐसे में सबाल ये उठता है कि आखिरकार डॉ राजीव बिंदल के साथ ऐसा क्यों किया गया। अब बिंदल के राजनीतिक नुकसान की भरपाई कौन करेगा। क्या डॉ बिंदल की खोई प्रतिष्ठा वापिस मिल पायेगा। क्योंकि डॉ बिंदल को उस वक़्त क्लीन चिट मिली है जब प्रदेश के सारा मंत्रीमंडल भर लिया गया है। अध्यक्ष पद की ताजपोशी हो चुकी है। यानी कि अध्यक्ष भी सिरमौर का ओर मंत्री भी एक सिरमौर का ऐसे में क्या बिंदल के सभी रास्ते बंद करने के बाद उन्हें क्लीनचिट दी गई।
समूचे घटनाक्रम से क्या साजिश की बू आ रही है। क्या डॉ बिंदल का बढ़ता कद भाजपा के ही नेताओं के लिए ख़तरा बना हुआ था इसलिए उनके ख़िलाफ़ सोची समझी साजिश रची गई। ये सारे सवाल है जिनको लेकर भाजपा आलाकमान से लेकर प्रदेश नेतृत्व को जवाब देने हैं। लेकिन यह जवाब मिल भी पाएंगे यह एक सवाल है ,और डॉक्टर बिंदल को उनकी खोई पद प्रतिष्ठा वापस मिल पाएगी यह उससे भी बड़ा सवाल है?