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खेल नीति का मकसद कागजों को काला करना नहीं, धरातल पर भी होना चाहिए काम: रामलाल ठाकुर

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अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के सदस्य एवं प्रदेश के पूर्व खेल मंत्री राम लाल ठाकुर ने प्रदेश की नई खेल नीति को लेकर प्रदेश सरकार पर हमला बोलते हुए इस खिलाड़ियों के साथ भद्दा मजाक करार दिया है। उन्होंने कहा कि खेल नीति बनाने का मकसद यह नहीं होता की केवल कागजों को ही काला किया जाए बल्कि खिलाड़ियों के लिए धरातल पर भी काम किया जाना चाहिए। प्रदेश सरकार ने नई खेल नीति-2020 के तहत गांवों से शहरों तक नए स्टेडियम बनाने की बात कही है। स्पोर्ट्स ट्रेनिंग डेस्टिनेशन बनाने के लिए 58 करोड़ का प्रस्ताव भी तैयार किया गया था । लेकिन अभी तक बुनियादी तौर पर कुछ भी सामने नहीं आ पाया है। सरकार प्रदेश के गांव, कस्बों और शहरों के खिलाडियों के साथ मजाक नहीं कर रही तो और क्या कर रही है। 

राम लाल ठाकुर ने कहा प्रदेश में खिलाड़ियों की कमी नहीं है लेकिन उनको खेल के लिए बेहतर वातावरण और साधन नहीं मिल पा रहे हैं। रामलाल ठाकुर ने कहा कि मैं स्वयं खेलों से जुड़ा रहा हूं। अगर प्रदेश के खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं और खेलने का वातावरण मिले तो प्रदेश के खिलाड़ी पंजाब और हरियाणा के खिलाडियों से कहीं अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। राम लाल ठाकुर ने कि प्रदेश के खिलाडियों को शहरों में तो कुछ सीमित साधन खेलने के लिए प्राप्त हो जाते हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों के खिलाडियों को कोई खेल सुविधा मिल नहीं पाती है और गांवों से शहरों की दूरी के कारण खिलाड़ी शहर तक नहीं पहुंच नहीं पाते हैं जिससे उनकी खेलने की इच्छा और प्रतिभा का दम घुट जाता है। 

राम लाल ठाकुर ने कहा कि हाई एल्टीट्यूड खेलों को भी बढ़ावा देने की बात खेल नीति में कही गई थी। लेकिन धरातल पर अभी तक कुछ भी नहीं उतर पाया है। नई खेल नीति हेतु प्रदेश सरकार ने प्रदेश की जनता से सुझाव जनवरी के महीने में मांगे थे लेकिन उन सुझावों पर कितना विचार किया गया अभी तक भी रहस्य ही बना हुआ है। उन्होंने कहा कि साल 2001 में प्रदेश की खेल नीति बनाई गई थी लेकिन 2005 में इन्होंने खेल मंत्री रहते हुए एक नया ड्राफ्ट खेल नीति और खेल संघों के बारे में तैयार भी करवाया था। लेकिन उसके बाद अब हिमाचल सरकार ने 19 साल बाद खेल नीति-2020 तैयार की है। लेकिन उसमें खिलाडियों को मिलने वाले सम्मान और उनके रोजगार पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं फ़िया गया है। 

हिमाचल की नई खेल नीति में पहली बार दिव्यांगों की खेलों के साथ साहसिक खेलों को शामिल तो किया गया है। लेकिन उनको कितना बजट मिलेगा और उन खेलों का कैसे क्रियान्वयन किया जाएगा उसके बारे में कोई रूप रेखा क्यों तैयार नहीं कि गई है। इस नीति को तैयार करने के लिए न तो खिलाडियों से कोई चर्चा की गई और न ही खेल संघों से कोई चर्चा की गई है। इस खेल नीति में प्रदेश में स्पोर्ट्स म्यूजियम और लाइब्रेरी बनाने की भी बात की गई है। पर वह कहां कहां बनेगी और उनपर कितना पैसा और कहां से खर्च होगा उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। 

उन्होंने कहा कि जो प्रदेश सरकार ने भाषा एवं संस्कृति और पर्यटन विभाग के साथ मिलकर स्पोर्ट्स म्यूजियम बनाने की बातें तो कही हैं। लेकिन उनमें इन्होंने यह भी कहा कि भाषा एवं संस्कृति विभाग के पास तो अपना कार्यलय चलाने तक का बजट नहीं है। टूरिज्म विभाग जो भी गतिविधियां करता है वह एशियन डिवेलपमेंट बैंक की सहायता से करता है तो ऐसे में खेल स्टेडियम और और खेल लाइब्रेरी की बात कुछ हजम नहीं हो रही है। इस खेल नीति को क्रियान्वित करने का प्रशासनिक ढांचा क्या होगा यह भी बड़ा सवाल है। राम लाल ठाकुर ने कहा कि खेल नीति को प्रदेश सरकार हल्के में न लें बल्कि उसको बुनियादी तौर पर जमीन पर उतारे तभी प्रदेश में खेलों को बढ़ावा मिल पायेगा अन्यथा खिलाडियों के साथ भद्दा मजाक ही होगा।