शिमला में आज नागरिक सभा ने कूड़े और पानी के भारी बिलों को माफ करने के मुद्दे पर 22 सितम्बर को नगर निगम कार्यालय के बाहर चौबीस घण्टे का घेराव करने का निर्णय लिया है। नागरिक सभा ने ऐलान किया है कि कूड़े औऱ पानी के बिलों के मुद्दे पर निर्णायक संघर्ष होगा। नागरिक सभा अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा और सचिव कपिल शर्मा ने नगर निगम शिमला से मार्च से अगस्त 2020 तक के कूड़े और पानी के बिलों को पूरी तरह माफ करने की मांग की है। उन्होंने शिमला शहर की जनता से भी अपील की है कि वह कोरोना काल के कूड़े और पानी के बिलों और उस से पहले के बकाया बिलों का भुगतान न करे।
उन्होंने कहा है कि नगर निगम शिमला जनता पर हजारों रुपये के भारी बिलों को जमा करने के लिए अनचाहा दबाव बना रहा है जिसे कतई मंज़ूर नहीं किया जाएगा। उन्होंने जनता से इन बिलों का बहिष्कार करने का आह्वान किया है। इस मुद्दे पर जनता को जागरूक करने के लिए नागरिक सभा ने वार्ड स्तर पर जन अभियान चलाने का निर्णय लिया गया है। इसके तहत समरहिल वार्ड में नागरिक सभा की बैठक का आयोजन किया गया। मार्च से अगस्त के 6 महीनों में कोरोना महामारी के कारण शिमला शहर के सत्तर प्रतिशत लोगों का रोज़गार दोबारा अथवा आंशिक रूप से चला गया है।
हिमाचल प्रदेश सरकार और नगर निगम शिमला ने कोरोना काल में आर्थिक तौर पर बुरी तरह से प्रभावित हुई जनता को कोई भी आर्थिक सहायता नहीं दी है। इसके कारण इस उद्योग में सीधे रूप से कार्यरत लगभग पांच हजार मजदूरों की नौकरी चली गयी है। पर्यटन का कार्य बिल्कुल खत्म हो गया है। इसके चलते शिमला शहर में हज़ारों टैक्सी चालकों, कुलियों, गाइडों, टूअर एंड ट्रैवल संचालकों आदि का रोज़गार खत्म हो गया है। इस से शिमला में कारोबार व व्यापार भी पूरी तरह खत्म हो गया है क्योंकि शिमला का लगभग चालीस प्रतिशत व्यापार पर्यटन से जुड़ा हुआ है औऱ पर्यटन उद्योग पूरी तरह बर्बाद हो गया है। ऐसी स्थिति में शहर की आधी से ज्यादा आबादी को दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया है।
ऐसी विकट परिस्थिति में प्रदेश सरकार औऱ नगर निगम से जनता को आर्थिक मदद की जरूरत और उम्मीद थी परन्तु इन्होंने जनता से किनारा कर लिया है। जनता को कूड़े के हज़ारों रुपये के बिल थमा दिए गए हैं। हर माह जारी होने वाले बिलों को पांच महीने बाद जारी किया गया है। उपभोक्ताओं को कूड़े और पानी के बिल हज़ारों में थमाए गए हैं जिस से घरेलू लोग तो हताहत हुए ही हैं परन्तु कारोबारियों, व्यापारियों, जिम्नेजियम, पीजी संचालकों आदि पर पहाड़ जैसा बोझ लाद दिया गया है। शैक्षणिक संस्थानों के बन्द होने के कारण छात्र और अभिभावक ग्रामीण क्षेत्रों को कूच कर चुके हैं औरउनके क्वार्टरों पर ताले लटके हुए हैं। जब क़वार्टर ही बन्द हैं और उपभोक्ताओं ने इन सुविधाओं को ग्रहण ही नहीं किया है तो फिर कूड़े और पानी के बिलों को जारी करने का क्या तुक बनता है। इन हज़ारों रुपये के बिलों का भुगतान करने के लिए भवन मालिकों पर बेवजह दबाव बनाया जा रहा है जिसका कड़ा प्रतिरोध किया जाएगा।