सरकार ने मंडी समेत कुछ शहरों को नगर निगम बनाने का कार्ड तो खेल दिया है। मगर वर्तमान में जो हालात बन रहे हैं। यह सरकार और सत्तादल के लिए घाटे का ही सौदा नजर आ रहा है। आबादी का मापदंड सरकार ने 50 हजार से कम करके 40 हजार करने का सराहनीय काम तो कर दिया है, मगर वर्तमान में इसे पूरा करने के लिए मंडी शहर के साथ लगते ग्रामीण हल्के नेला, चड़याणा, कांगणी, तल्याड़, सन्यारड़, देवधार, पंजैहठी, बिजणी, अरड़ा, छिपणू, बाड़ी गुमाणू, षिल्हाकीपड़, दुदर भरौण, चढयारा के साथ साथ फोरलेन के कारण और पहले से ही साडा के तहत आने वाले ओटा, गुटकर, चलाह चक्कर, बगला, दौहंदी, चंडयाल, भड़याल व बैहना आदि गांवों को साथ मिलाना होगा।
मंडी शहर की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार ली जा रही है जो 26421 है। इसके साथ इन ग्रामीण इलाकों को मिला कर ही यह आंकड़ा 40 हजार से उपर जाता है। अब इन ग्रामीण इलाकों में एक भी ऐसा गांव या उपगांव नहीं है। जो मंडी नगर निगम में मिलने के लिए राजी हो। लोगों को बेतहाश विकास की बात गले नहीं उतर रही है। उल्टे उन्हें ग्रामीण स्तर पर मिलने वाली सुविधाएं छिन जाने और शहर में मकानों के नक्षे पास करवाने का सिरदर्द, गृह कर समेत कई तरह के जो टैक्स हैं। लोग उसकी कल्पना से भयभीत होकर ही विरोध कर रहे हैं।
लगभग सभी गांवों के प्रतिनिधिमंडल प्रशासन या सरकार से मिल कर अपना विरोध जता चुके हैं। विरोध का आभास शायद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को भी हो गया है। क्योंकि इसका संकेत उनके मंडी प्रवास के दौरान आए ब्यानों से हो जाता है। अभी तक मंडी शहर की संस्थाएं ही नगर निगम के हक में हैं। जबकि भाजपा भी इसके पूरी तरह से पक्ष में लग रही है। कांग्रेस इसे दोधारी तलवार समझ कर खामोश बनी हुई है। इसमें कोई राय नहीं कि नगर निगम बनने से बड़ा बजट आएगा, मंडी और आसपास के इलाकों की कायाकल्प हो जाएगी, प्रशासनिक ढांचा मजबूत होगा, शहरी सुविधाएं मिलने लगेंगी मगर फिर भी ग्रामीणों की जो आशंका है उसका न तो जिला प्रशासन ही लोगों के बीच जाकर निगम के फायदों को बता रहा है और न ही सरकार इसे प्रभावी तरीके से विरोध करने वालों के समक्ष रख पा रही है।
ऐसा नहीं है कि मंडी को नगर निगम बनाने की बात पहली बार हो रही है यह काफी अरसे से समय-समय पर मुद्दा उठता रहा है। मगर मुख्यमंत्री चूंकि मंडी से हैं ऐसे में उनका यह सपना है कि उनका गृह नगर निगम बन जाए। पड़ताल में सामने आया है कि 2016 के सर्वे के अनुसार मंडी शहर में 8700 घर हैं। जिन पर गृह कर दिया जा रहा है, 2011 के बाद इस शहर का बेतहाश विस्तार हुआ है, शहर कटौला जोगिंदरनगर मार्ग पर सांबल बिजनी तक, रिवालसर मार्ग पर तल्याड़ तक, कुल्लू मार्ग पर बिंदराबणी तक, सुंदरनगर मार्ग पर गुटकर तक, अस्पताल से आगे बाड़ी गुमाणू व भियूली नेला, सन्यारड़ तक फैल चुका है, कई जगह तो स्ट्रीट लाइट की सुविधा भी दी जा रही है।
ऐसे में नई जनगणना जो 2021 के मध्य तक आ जाने की पूरी उम्मीद है में शहर और साथ लगते शहरी आवादी जैसे इलाकों की जनसंख्या 40 हजार से उपर जा सकती है। आवादी का मापदंड पूरा हो जाता है तो 2 करोड़ की सालाना टर्न ओवर और अन्य मापदंड मंडी पहले ही पूरे कर रहा है। ऐसे में न तो किसी का विरोध होगा और नगर निगम भी बन जाएगी। अब यदि तय समय के अनुसार मंडी में नगर परिशद के चुनाव हो भी जाते हैं तो जैसे ही जनगणना का काम पूरा होगा, नगर निगम का गठन करके नए चुनाव हो सकते हैं। इसका श्रेय भी वर्तमान सरकार और मुख्यमंत्री को ही मिलेगा क्योंकि अभी सरकार के दो से अधिक साल का कार्यकाल बाकी है। ऐसे में सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी, किसी को विरोध भी नहीं होगा। जल्दबाजी में लोगों के विरोध को दबा कर नगर निगम बनाया गया तो यह घाटे का सौदा हो सकता है।