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शांता कुमार का 87वां जन्मदिन आज, जानें उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें

मृत्युंजय पुरी |

बीजेपी के वरिष्ठ नेता एवं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री का आज जन्मदिन है। शांता ने आज अपने जीवन के 86 साल पूरे कर 87वें साल में कदम रख दिया है। हालांकि कोरोना के चलते उन्होंने पहले ही अपना जन्मदिन न मनाने की बात कही थी और इस दिन अपने किसी भी संबंधी, दोस्तों और पार्टी कार्यकर्ताों से उनके घर न आने का आग्रह किया था। हालांकि इस विवश्ता के लिए उन्होंने सभी से क्षमा भी मांगी थी। उन्होंने कहा कि आप विश्वास रखें कि जब आप अपने घर से उन्हें याद करेंगे तो वह तन से नहीं मन से आपको मिल लेंगे। लोगों ने भी उनके इस आग्रह को मानते हुए उन्हें फोन और सोशल मीडिया के माध्यम से जन्मदिन की बधाई दी। 

बता दें कि शांता कुमार का जन्म कांगड़ा जिला के गढ़जमूला में 12 सितंबर 1934 को जगन्नाथ शर्मा और कौशल्या देवी के घर में हुआ । तब किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि पंडित के घर पैदा होने वाले शांता कुमार बड़े होकर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनेगें। शांता कुमार ने प्रांभिक शिक्षा के बाद जेबीटी की पढ़ाई की उसके बाद स्कुल में शिक्षा देने लग पड़े। लेकिन आरएसएस में मन लगने की वजह से दिल्ली चले गए और वहां जाकर संघ का काम किया और ओपन यूनिवसर्सिटी से वकालत की डिग्री की । 

इस तरह शुरू हुआ शांता का राजनीतिक करियर –

शांता कुमार ने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत पंच के चुनाव से की थी । शांता कुमार ने 1963 में पहली बार गढ़जमूला पंचयात से जीते थे । उसके बाद वह पंचयात समिति के भवारना से सदस्य नियुक्त किये गए । कांगड़ा जिले के 1965 से 1970 तक जिला परिषद के भी अध्य्क्ष रहे । सत्याग्रह और जनसंघ के आंदोलन में भी शांता कुमार ने भाग लिया और जेल की हवा भी खाई । शांता ने अपना पहला चुनाव 1971 में पालमपुर विधानसभा से लड़ा और कुंजबिहारी से करीबी अंतर् से हार गए । एक साल बाद प्रदेश को पूर्णराज्य का दर्जा मिल गया और 1972 में फिर चुनाव हुए। शांता कुमार ने यह चुनाव खेरा विधानसभा से लड़ा और चुनाव जीते और पहली बार विधानसभा पहुंचे । 

1977 में आपातकाल के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो जनसंघ की सरकार बनी और शांता कुमार ने सुलह विधानसभा से चुनाव लड़ा और फिर प्रदेश के मुखिया बने। लेकिन सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके । इसके बाद 1979 में पहली बार कांगड़ा लोकसभा के चुनाव जीते और सांसद बने । 1990 में वह फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भाजपा की सरकारों को वर्खाश्त कर दिया और शांता कुमार एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके ।
 
अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र की सरकार में वह खाद एंव उपभोक्ता मामले के मंत्री बने, इसके बाद 1999 से 2002 तक वाजपेयी सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रायल के मंत्री रहे । वहीं 2014 में भी कांगड़ा चंबा लोकसभा सीट के सांसद रहे। राज्यसभा में भी शांता कुमार 2008 के लिए नियुक्त रह चुके हैं।  

अपने कार्यकाल में किए कई बड़े काम-

शांता कुमार ने अन्तोदय जैसी योजना शुरू की जिससे कई गरीब परिवारों को सस्ता राशन मिला, पानी को लोगों के घर-घर तक पहुंचाया, प्रदेश के पानी पर रायल्टी लगाई गई, प्रदेश में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगाये, नो वर्क नो पेय जैसे सख्त फैसला भी लिए।  

क्यों कहा जाता है पानी वाला मुख्यमंत्री- 

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को पूरे प्रदेश में पानी वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है ।1990 में शांता कुमार जब प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने प्रदेश में हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट की शुरुआत की । पहाड़ी राज्य होने के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में बहुत सी नदियां बहती हैं तो यह लगता नहीं कि इस प्रदेश के लोगों को पानी की दिक्कत का सामना करना पड़ेगा। लेकिन 1990 से पहले प्रदेश के लोगों को दूरदराज तक पानी के लिए जाना पढ़ता था। लेकिन मुख्यमंत्री शांता कुमार ने रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल करवाया और प्रदेश के तमाम जिलों में हेड पंप लगाए उनके लगवाए गए हैंड पंप आज भी लोगों को पानी की सुविधा प्रदान करवा रहे हैं। यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को पूरे प्रदेश में पानी वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है। शांता कुमार ने आपातकाल के दौरान जेल में बहुत से किताबें भी लिखी हैं। एक नेता होने के साथ वह एक अच्छे लेखक भी हैं। 

राजनीती के इतना लंबा अरसा विताने के बाद भी उनकी छवि ईमानदार और सिद्धांतों से कभी समजोता नहीं किया । अगर अपनी ही सरकार में गलत हो रहा हो तो वो उसको भी खुल कर बोलते हैं। देश की राजनीती और प्रदेश में उनका हमेशा ईमानदार नेता के रूपा में याद किया जायेगा। परिवारवाद की राजनीती से भी शांता कुमार दूर रहे । वहीं, वर्तमान की बात की जाए तो इस बार के हुए लोकसभा चुनावों से पहले शान्ता कुमार ने चुनावी राजनीति से सन्यास ले लिया। लेकिन गैर चुनावी राजनीति में अभी भी भाजपा के सिपाही की तरह तैनात हैं। शांता कुमार कहते हैं कि चुनावी राजनीति से सन्यास लेकर उनका ध्यान अब विवेकानंद ट्रस्ट की तरफ है। शान्ता कुमार अपनी आत्मकथा को भी लिख रहे हैं।