नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेशों के फेर में फंसे प्रदेश के 30 हजार मकान मालिकों को लेकर अब सरकार और शहरी विकास विभाग की नींद टूटती नज़र आ रही है। एनजीटी के आदेशो के बाद सरकार जहां लोगों को राहत देने के लिए क़ानूनी दावपेंच का सहारा लेने की सोच रही है तो वहीं, शहरी विकास विभाग भी अब बेतरतीब निर्माण कार्य को लेकर लोगो को जागरूक करने में जुट गया है।
इसी के चलते शिमला में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें वास्तुकारों के साथ शिमला के निर्माण कार्य पर मंथन किया गया। एनजीटी के आदेशों को राज्य सरकार या नगर निगम 16 दिसंबर तक रिव्यू के लिए एनजीटी में दायर करना होगा। किसी भी फैसले को रिव्यू में डालने के लिए एक महीने की अवधि रहती है। इसके बाद सरकार या स्थानीय निकाय के पास रिव्यू की कोई ऑप्शन नहीं होगी। इसके लिए सुप्रीमकोर्ट जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं होगा।
शहरी विकास विभाग के निदेशक संदीप शर्मा ने बताया की एनजीटी के नए आदेश बिलकुल सही है शिमला शहर को यदि बचाना है तो बेतरतीब निर्माण को रोकना जरुरी है हालांकि ये मामला हिमाचल उच्च न्यायालय में भी चल रहा है लेकिन शहरी विकास विभाग इसको लेकर पहले ही चिंतित है। एनजीटी के नए आदेशा अनुसार निगम से पहले ही नक्शे पास करवा चुके प्लाट के मालिकों को खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
ये भी पढ़ें- हिमाचल में मकान को वैध कराने में चुकानी होगी ये कीमत