शिमला नागरिक सभा ने करोना काल में बढ़े बिजली पानी के बिलों को लेकर आज उपायुक्त कार्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन किया। नागरिक सभा ने निगम को चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों को नहीं माना जाता है तो महाधरना किया जाएगा। नागरिक सभा अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा कि कोरोना महामारी के इस दौर में मार्च से सितम्बर तक 6 महीनों में कोरोना महामारी के कारण शिमला शहर के 70 प्रतिशत लोगों का रोज़गार पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से चला गया है। हिमाचल प्रदेश सरकार और नगर निगम शिमला ने कोरोना काल में आर्थिक तौर पर बुरी तरह से प्रभावित हुई जनता को कोई भी आर्थिक सहायता नहीं दी है।
विजेंग्र महेरा ने कहा कि नगर निगम से जनता को आर्थिक मदद की जरूरत और उम्मीद थी परन्तु इन्होंने जनता से किनारा कर लिया है। जनता को कूड़े के हज़ारों रुपये के बिल थमा दिए गए हैं। बन्द क्वार्टरों के हर महीने के कूड़े और पानी के बिल जबरन मकान मालिकों से वसूले जा रहे हैं। हर महीने जारी होने वाले बिलों को चार महीने बाद जारी किया जा रहा है। उपभोक्ताओं को कूड़े और पानी के बिल हज़ारों में थमाए गए हैं।
उन्होंने कहा कि जब क़वार्टर ही बन्द हैं और उपभोक्ताओं ने इन सुविधाओं को ग्रहण ही नहीं किया है तो फिर कूड़े और पानी के बिलों को जारी करने का क्या तुक बनता है। इन हज़ारों रुपये के बिलों का भुगतान करने के लिए भवन मालिकों पर बेवजह दबाव बनाया जा रहा है। उन्होंने मांग की है कि कोरोना काल के कूड़े के बिलों को माफ किया जाए। अगर निगम ऐसा नही करता है तो 13 अक्टूबर को इन मांगों को लेकर महाधरना दिया जाएगा। जो तब तक चलेगा जबतक मांगे नही मान ली जाती है।