हिमाचल की वादियों में फिर से 111 साल पुराना भाप इंजन हलचल करता नजर आया है। इस रेलमार्ग पर 27 नवंबर से सदी के अधिक पुराने भाप इंजन को फिर चलाया जा रहा है। इसमें दो से तीन बोगियां लगाई जाएंगी। शुक्रवार को स्टीम इंजन का सफल परीक्षण किया गया। संयुक्त टीम ने शिमला से कैथलीघाट रेलवे स्टेशनों के मध्य पूरा किया है।
एक से डेढ़ लाख में होती है बुकिंग
शिमला रेलमार्ग पर मौजूद इस ऐतिहासिक इंजन की यात्रा का नजारा लेने के लिए एक से डेढ़ लाख रुपये एक यात्रा का अदा करना होता है। रेलवे के मुताबिक शिमला से कैथलीघाट के बीच एक बार आने व जाने के लिए करीब एक लाख रुपये खर्च करने पर ही इसकी बुकिंग की जाती है। इसे कोयले और पुरानी तकनीक पर चलाया जाता है। पर्यटन सीजन के दौरान ही इसकी बुकिंग करवाई जाती है जोकि अधिकतर विदेशों से आने वाले पर्यटक करवाते हैं।
कालका शिमला सेक्शन के असिस्टेंट मैकेनिकल इंजीनियर सोहन लाल ने बताया कि इसे कुछ निर्धारित तिथियों के दौरान शोघी, तारादेवी, जतोग, समरहिल, शिमला व कैथलीघाट स्टेशनों के मध्य ही चलाया जाएगा। उन्होंने बताया कि शुक्रवार के दिन उन्होंने इसके ब्वायलर, कोयल द्वारा स्टीम व इसकी परफॉरमेंस की जांच की है जो कि सही पाई गई है।
लंदन की कंपनी ने बनाया था इंजन
1905 में लंदन की एक कंपनी नॉर्थ ब्रिटिश लोकोमोटिव ने इस इंजन केएसआर स्टीम लोकोमोटिव 520 को तैयार किया था। कालका-शिमला रेलमार्ग पर यह एक मात्र सबसे पुरानी धरोहर जो अब तक रेलवे ट्रैक पर बनी हुई है। हालांकि प्रदेश की केवीआर यानी कांगड़ा वैली रेल पर भी एक पुराना स्टीम इंजन मौजूद है, लेकिन वह बहुत समय से बंद व खराब है।