भारत की कम्युनिस्ट पार्टी प्रदेश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में तेजी से हो रही वृद्धि और इससे हो रही मौतों पर गंभीर चिंता व्यक्त करती है। इन हालात के लिए सरकार की इससे निपटने के लिए ढुलमुल रवैया और लाचार व्यवस्था को मुख्यतः उत्तरदायी मानती है। आज सरकार की इस लाचार कार्यप्रणाली के कारण जिस रूप से मुख्यमंत्री आइसोलेशन में है। इनके मंत्रिमंडल में मंत्री और इनके परिवार के सदस्य, मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी और कर्मचारी, सत्तादल के नेतागण और इनके साथ-साथ डॉक्टर, पैरा मेडिकल स्टाफ, पुलिस और अन्य कर्मचारी जो इसमें कार्य कर रहे हैं। आज कोरोना संक्रमित पाए जा रहें हैं और इनमे से कुछ को जान तक गवानी पड़ी है। इससे सरकार की तैयारियों की पोल खुल गई है। यहां तक कि प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री की सुरक्षा में भी कोविड19 को लेकर तय नियमों को भी सरकार ने ताक पर रख दिया था। इससे स्पष्ट हो गया है कि सरकार द्वारा मार्च में लॉक डाउन और कर्फ्यू लगाने के पश्चात जो तैयारियां की जानी चाहिए थी वह नहीं की गई, मात्र दिखावे के लिए केवल दकियानुसी राजनीति और अतार्किक कार्य कर मीडिया में इसके प्रचार और प्रसार में ही लगी रही।
आज प्रदेश में 16 हजार से अधिक कोरोना संक्रमित मरीज आ चुके हैं और 220 से अधिक लोगों की इसके कारण जान जा चुकी है। सीपीएम सरकार से दोबारा मांग करती है कि कोविड-19 से निपटने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए युद्धस्तर की रणनीति बनाकर कार्य किया जाए और इसके लिये कुशल नेतृत्व में एक टास्क फोर्स का गठन किया जाए। इस टास्क फोर्स में चिकित्सा और अन्य क्षेत्र में विशेषज्ञ सम्मिलित किया जाए। सरकार प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को चुस्त दुरुस्त करने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाए और डॉक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ और अन्य कर्मचारियों की भर्तियां कर अस्पतालों में कोरोना और अन्य बीमारियों से ग्रसित सभी मरीजों का उचित इलाज सुनिश्चित करें। प्रदेश में अनलॉक की प्रक्रिया के चलते प्रदान की गई रियायतों को ध्यान में रखते हुए नियम तय किये जाए। इनकी पालना के लिए सरकार संजीदगी से कार्य करे। यदि सरकार तुरंत इन मांगों पर अमल कर कोविड19 से निपटने के लिए ठोस कदम नहीं उठाती तो सीपीएम सरकार की इस लचर व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन चलाएगी।
मार्च में लॉकडाउन लगाने के पश्चात सरकार को इससे निपटने के लिए जिस प्रकार से स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं में सुधार कर इसे मजबूत करने के लिए कार्य करना चाहिए था। सरकार ने बिल्कुल भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। जिसके परिणाम आज कोविड अस्पतालों में मरीजों के इलाज में की जा रही कोताही में स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। रिपन डीडीयू अस्पताल में एक महिला मरीज़ द्वारा की गई आत्महत्या, सरकार के मंत्री और कोरोना संक्रमित मरीजों के परिजनों द्वारा राज्य के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी और अन्य अस्पतालों की लचर कार्यप्रणाली पर उठाये गए सवालों से सरकार की तैयारियों की पोल खोल दी है और विडम्बना यह है कि सरकार आज भी इससे निपटने के लिए संजीदा नहीं है।