मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वालामां का मंदिर हिमाचल के कांगड़ा घाटी में स्थित है। कहा जाता है कि यक्ष यज्ञ में सत्ती के शव को उठाकर जब भगवान शंकर बेसुध घूमने लगे तो विष्णु भगवान ने चक्र चलाकर मां के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। उनमें से माता की जीभ इस जगह गिरी थी। इसीलिए इसका नाम ज्वालादेवी मंदिर पड़ गया।
ज्वालाजी मंदिर में माता के मूर्तिरूप की नहीं बल्कि ज्वाला रूप की पूजा और दर्शन होते है जो हजारों वर्षों से प्रज्वलित है। कालांतर में इस स्थान को गुरुगोरख नाथ ने व्यवस्थित किया। यहां प्रज्वलित ज्वाला प्राकृतिक न होकर चमत्कारिक मानी जाती है। मंदिर के थोड़ा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि सतयुग में महाकाली के परमभक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यहां भव्य मंदिर बनाया था। बाद में इस स्थान की खोज पांडवों ने की थी। इसके बाद यहां पर गुरुगोरखनाथ ने घोर तपस्या करके माता से वरदान और आशीर्वाद प्राप्त किया था। सन् 1835 में इस मंदिर का पुन: निर्माण राजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने करवाया था।
माता ज्वालामुखी के साथ भक्त ध्यानु भक्त की प्रसिद्ध कथा भी जुड़ी हुई हैं। जब मां ने अकबर का घमंड भी चूर चूर कर दिया था। एक बार भक्त ध्यानू हजारों यात्रियों के साथ माता के दरबार में दर्शन के लिए जा रहे थे। इतनी बड़ी तादाद में यात्रियों को जाते देख अकबर के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली में उन्हें रोक लिया और ध्यानू को पकड़कर अकबर के दरबार में पेश किया गया। अकबर ने पूछा तुम इतने सारे लोगों को लेकर कहां जा रहे हो? ध्यानु ने हाथ जोड़कर विनम्रता से उत्तर दिया कि हम ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहे हैं। मेरे साथ जो सभी लोग हैं वे सभी माता के भक्त हैं। यह सुनकर अकबर ने कहा यह ज्वालामाई कौन है और वहां जाने से क्या होगा? तब भक्त ध्यानू ने कहा कि वे संसार का जननी और जगत का पालन करने वाली है। उनके स्थान पर बिना तेल और बाती के ज्वाला जलती रहती है।
अकबर ने कहा कि यदि तुम्हारी माता में इतनी शक्ति है तो इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन काट देते हैं, तुम अपनी देवी से कहकर दोबारा जिंदा करवा लेना। इस तरह घोड़े की गर्दन काट दी गई। घोड़े की गर्दन दोबारा जोड़ने के लिए ध्यानू मां के दरबार में जा बैठा। ध्यानू ने हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना की , हे मां अब मेरी लाज आपके ही हाथों में है। कहते हैं कि अपने भक्त की लाज रखते हुए मां ने घोड़े को पुन: जिंदा कर दिया। यह देखकर अकबर हैरान रह गया।
लेकिन अकबर तब भी नहीं माना और उसने अपनी सेना बुलाकर खुद मंदिर की ओर चल पड़ा। अकबर ने माता की परीक्षा लेने के लिए मंदिर में अपनी सेना से पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला नहीं बुझी। कहते हैं कि तब उसने एक नहर खुदवाकर पानी का रुख ज्वाला की ओर कर दिया लेकिन तब भी वह ज्वाला जलती रही। तब जाकर अकबर को यकीन हुआ और उसने वहां सवा मन सोने का छत्र चढ़ाया लेकिन माता ने इसे स्वीकार नहीं किया और वह छत्र गिरकर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। आप आज भी अकबर का चढ़ाया वह छत्र ज्वाला मंदिर में देख सकते हैं।
प्रति वर्ष चैत्र रामनवमी में एक माह का विशाल मेला के साथ चैत्र और शारदीय नवरात्र में भक्तों का तांता लगता है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु नारियल, चुनरी माला फूल चढ़ाकर मनचाहा फल प्राप्त करते हैं। नवरात्र के दौरान मां के भक्त जवारी जुलूस लेकर हाथों में जवार, मशाल, त्रिशूल, खप्पर व तलवार इत्यादि के साथ ढोल मजीरा के साथ नाचते गाते देवी मां के दर्शन करने आते हैं।