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शिमला में किसानों के समर्थन में विरोध, केंद्र और खट्टर सरकार को बताया किसान विरोधी

पी. चंद |

सीटू, हिमाचल किसान सभा, जनवादी महिला समिति, डीवाईएफआई, एसएफआई, दलित शोषण मुक्ति मंच ने अपनी मांगों और तीन किसान विरोधी कानूनों को लेकर संघर्षरत  किसानों के आंदोलन का पुरजोर समर्थन किया है। इन संगठनों ने केंद्र और हरियाणा सरकार द्वारा किये जा रहे किसानों के बर्बर दमन की कड़ी निंदा की। किसानों के आंदोलन के समर्थन में प्रदेश भर के मजदूरों, किसानों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों और सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों  द्वारा राज्यभर में प्रदर्शन करके किसानों के साथ एकजुटता प्रकट की गई।

सीटू के सदस्यों ने कहा है कि मोदी और खट्टर की भाजपा सरकारें किसानों को कुचलने पर आमादा हैं जोकि बेहद निंदनीय है। उन्होंने इन सरकारों को तानाशाह करार दिया है। किसान आंदोलन को दबाने से स्पष्टतः ज़ाहिर हो चुका है कि ये दोनों भाजपा सरकारें पूंजीपतियों और नैगमिक घरानों के साथ हैं। उनकी मुनाफाखोरी को सुनिश्चित करने के लिए किसानों की आवाज़ को दबाना चाहती हैं जिसे देश का मजदूर-किसान कतई मंज़ूर नहीं करेगा।

उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार किसान विरोधी नीतियां लाकर किसानों को कुचलना चाहती है। उन्होंने देश के किसानों को ऐतिहासिक आंदोलन के लिए बधाई दी है जिसमें करोड़ों किसान शामिल हो चुके हैं। लाखों किसान ट्रेक्टरों के साथ आंदोलन के मैदान में हैं। सरकार की लाठी, गोली, आंसू गैस, सड़कों पर खड्डे खोदना, बैरिकेड और पानी की बौछारें भी किसानों के होंसलों को पस्त नहीं कर पा रही हैं। उन्होंने किसानों के साथ मजदूरों की एकजुटता का आह्वान किया है।

उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों नए कृषि कानून पूर्णतः किसान विरोधी हैं। इसके कारण किसानों की फसलों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए विदेशी और देशी कंपनियों और बड़ी पूंजीपतियों के हवाले करने की साज़िश रची जा रही है। इन कानूनों से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा को समाप्त कर दिया जाएगा। आवश्यक वस्तु अधिनियम के कानून को खत्म करने से जमाखोरी,कालाबाजारी और मुनाफाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। इससे बाजार में खाद्य पदार्थों की बनावटी कमी पैदा होगी और खाद्य पदार्थ महंगे हो जाएंगे। कृषि कानूनों के बदलाव से बड़े पूंजीपतियों और देशी-विदेशी कंपनियों का कृषि पर कब्जा हो जाएगा और किसानों की हालत दयनीय हो जाएगी।