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छात्र अभिभावक मंच ने किया शिक्षा निदेशालय का घेराव, पूरी फीस वसूली का फैसला वापस लेने की मांग

पी. चंद |

निजी स्कूलों की मनमानी लूट और पूरी फीस वसूली को लेकर छात्र अभिभावक मंच का विरोध लगातार जारी है। इसी कड़ी में छात्र अभिभावक मंच ने सरकार द्वारा निजी स्कूलों को पूरी फीस अधिकृत करने के फैसले के विरोध में शिक्षा निदेशालय शिमला के बाहर प्रदर्शन किया। लगभग एक घण्टे तक प्रदेश सरकार, शिक्षा विभाग और निजी स्कूल प्रबंधनों के खिलाफ जोरदार नारेबाजी करते रहे। मंच ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि इस फैसले को तुरंत वापस लिया जाए और निजी स्कूलों द्वारा छात्रों और अभिभावकों की पूरी फीस वसूली में की जा रही मानसिक प्रताड़ना पर रोक लगाई जाए। मंच ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर उसने पूर्ण फीस वसूली के निर्णय को जबरन लागू करने की कोशिश की तो इसके खिलाफ जोरदार आंदोलन होगा। 

मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने शिक्षा निदेशक को चेताया है कि अगर उन्होंने निजी स्कूलों की एनुअल चार्जेज़, कम्प्यूटर फीस, स्मार्ट क्लास रूम और अन्य चार्जेज़ की वसूली पर रोक न लगाई तो आंदोलन तेज होगा। आंदोलन की अगली रणनीति के तहत 9 दिसम्बर को शिक्षा निदेशक कार्यालय का घेराव होगा। उन्होंने निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छः लाख छात्रों के दस लाख अभिभावकों सहित कुल सोलह लाख लोगों से निजी स्कूलों की पूर्ण फीस उगाही का पूर्ण बहिष्कार करने की अपील की है। 

उन्होंने पूर्ण फीस वसूली पर कैबिनेट के निर्णय को बेहद चौंकाने वाला छात्र और अभिभावक विरोधी निर्णय बताया है। इस निर्णय के आने के बाद निजी स्कूलों ने छात्रों और अभिभावकों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया है। निजी स्कूलों व संस्थानों ने दोबारा से छात्रों – अभिभावकों को पूर्ण फीस जमा करने के लिए मोबाइल मैसेज भेजना शुरू कर दिए हैं। इन मैसेज में उन्हें डराया धमकाया जा रहा है कि अगर पूर्ण फीस जमा न की गई तो छात्रों को न केवल संस्थानों से बाहर कर दिया जाएगा अपितु उन्हें परीक्षाओं में भी नहीं बैठने दिया जाएगा। ऐसे अनेकों उदाहरण प्रदेश में देखने को मिल रहे हैं। 

विजेंद्र मेहरा ने माननीय उच्च न्यायालय से अपील की है कि वह निजी स्कूलों द्वारा पूर्ण फीस वसूली के मामले पर हस्तक्षेप करके प्रदेश सरकार पर कार्रवाई करे। प्रदेश सरकार उच्च न्यायालय के निर्णय की गलत व्याख्या कर रही है व अपनी सुविधा अनुसार माननीय उच्च न्यायालय के नाम पर निजी स्कूलों को छूट दे रही है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा है कि प्रदेश सरकार द्वारा आज तक माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 27 अप्रैल 2016 को निजी स्कूलों की लूट को रोकने के संदर्भ में दिए गए ऐतिहासिक निर्णय को लागू नहीं किया गया है। यह न्यायालय के आदेशों की अवहेलना है। 

उन्होंने हैरानी व्यक्त की है कि उच्च न्यायालय के साफ-साफ शब्दों में दिए गए वर्ष 2016 के निर्णय को प्रदेश सरकार लागू नहीं करती है व वर्ष 2020 के निर्णय को अपनी ही सुविधा अनुसार पुनर्परिभाषित करके निजी स्कूलों को फायदा पहुंचा रही है। उन्होंने प्रदेश सरकार से पूछा है कि जब उच्चतर शिक्षा निदेशक ने पूर्ण फीस वसूली की अधिसूचना अभी तक जारी नहीं की है तो फिर निजी स्कूल प्रबंधन किस आधार पर अभिभावकों को पूर्ण फीस जमा करने के संदेश भेज रहे हैं और उन्हें क्यों मानसिक तौर पर प्रताड़ित कर रहे हैं।

उन्होंने प्रदेश सरकार से पूछा है कि शिक्षा निदेशक के आदेशों के बिना पूर्ण फीस वसूली की मांग करने वाले निजी स्कूल प्रबंधनों पर उसने क्या कानूनी कार्रवाई की है। उन्होंने मांग की है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(एफ) के अनुसार निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के नैतिक व भौतिक अधिकारों की रक्षा की जाए। उन्हें एनुअल चार्जेज़,कम्प्यूटर,समकरत क्लास रूम फीस आदि के नाम पर मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने वाले निजी स्कूल प्रबंधनों पर सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाए।