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28 दिसंबर को छात्र अभिभावक मंच करेगा प्रदर्शन, नहीं हुई ट्यूशन फी की अधिसूचना जारी

पी. चंद |

छात्र अभिभावक मंच निजी स्कूलों द्वारा छात्रों और अभिभावकों की मानसिक प्रताड़ना पर रोक लगाने और सरकार की भ्रामक बयानबाजी के खिलाफ 28 दिसम्बर को ग्यारह बजे शिक्षा निदेशालय शिमला के बाहर प्रदर्शन करेगा। मंच ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर उसने एनुअल चार्जेज़ सहित सभी तरह के चार्जेज़ और पूर्ण फीस वसूली के निर्णय को जबरन लागू करने की कोशिश की व डीसी की अध्यक्षता में बनने वाली कमेटियों की अधिसूचना तुरन्त जारी न की तो इसके खिलाफ आंदोलन तेज होगा।

मंच के संयोजक ने प्रदेश सरकार और शिक्षा अधिकारियों पर अभिभावकों को गुमराह करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि पहले शिक्षा मंत्री ने ट्यूशन फीस के अलावा सभी तरह के चार्जेज़ को माफ करने का बयान दिया और दो दिन बाद वह अपने बयान से मुकर गए। इसके बाद प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक में निजी स्कूलों की फीसों को लेकर डीसी की अध्यक्षता में कमेटियां बनाने का निर्णय लिया गया लेकिन पांच दिन बीत जाने के बावजूद भी इसकी अधिसूचना तक जारी नहीं हो पाई।

आखिर अभिभावक किस तरह विश्वास करें कि सरकार अभिभावकों को भारी फीसों और सभी तरह के चार्जेज़ से राहत देना चाहती है। सरकार को एक अधिसूचना जारी करने में ही पांच दिन का समय गुज़र गया है। इस से साफ हो रहा है कि ये कमेटियां भी केवल आई वॉश हैं और निजी स्कूलों को फायदा पहुंचाने के लिए ही यह सब कारगुज़ारी की जा रही है। सरकार की इस लचर कार्यप्रणाली से सरकार की मंशा साफ हो रही है कि वह निजी स्कूलों को संचालित करने और उनकी मनमानी फीसों पर रोक लगाने के लिए कतई गम्भीर नहीं है। 

उन्होंने सरकार पर निजी स्कूलों पर नरम रहने का आरोप लगाया है। उन्होंने हैरानी व्यक्त की है कि शिमला के कई स्कूलों द्वारा अभिभावकों को एनुअल चार्जेज़ सहित सभी तरह के चार्जेज़ जमा करने के लिए लगातार मैसेज भेजे जा रहे हैं और फोन किये जा रहे हैं। स्कूल प्रबंधनों द्वारा अभिभावकों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्हें प्रबंधनों द्वारा बार-बार फोन करके मानसिक तौर पर परेशान किया जा रहा है। अभिभावकों पर वार्षिक परीक्षाओं और रिज़ल्ट की आड़ में भारी भरकम चार्जेज़ जमा करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। इसके बावजूद भी सरकार की लचर कार्यप्रणाली अपने आप बहुत सारे सवालों का जबाव दे रही है। यह स्पष्ट हो रहा है कि निजी स्कूलों के लिए कानून बनाने और रेगुलेटरी कमीशन स्थापित करने के लिए सरकार जरा भी गम्भीर नहीं है।