प्रतिबंध लगा होने के बावजूद हिमाचल में सेब के पेड़ों और इसके फलों पर कई तरह के ग्रोथ रेगुलेटर रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है। केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड की ओर से मंजूरी नहीं मिलने के बावजूद इन खतरनाक और जहरीले रसायनों का गैर कानूनी तरीके से इस्तेमाल हो रहा है। वहीं, हिमाचल सरकार की एजेंसियां मूकदर्शक बनी हुई हैं। केंद्रीय एजेंसियों का भी इस पर कोई गौर नहीं है। हिमाचल प्रदेश सेब की पैदावार में जम्मू-कश्मीर के बाद देश का दूसरा बड़ा राज्य है। यहां करीब 4000 करोड़ का सालाना सेब कारोबार होता है।
अच्छी पैदावार लेने और बाजार में फलों को अच्छे दामों पर बेचने के लिए हिमाचल में प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर का इस्तेमाल होने लगा है। कई कंपनियां तरह-तरह के रसायनों को बागवानों को महंगे दामों पर बेच रही हैं।
केंद्रीय कीटनाशक अधिनियम 1968 की धारा 38(2) के मुताबिक ऐसे तमाम रसायन तब तक इस्तेमाल नहीं किए जा सकते, जब तक इन्हें प्रतिबंधित दवाओं की सूची से हटा नहीं दिया जाता। इस बारे में एक कमेटी का गठन कर इससे रिपोर्ट मांगी है। कमेटी मे बागवानी आयुक्त समेत अन्य विशेषज्ञ अधिकारियों की नियुक्ति की गई है।
पूरी जांच-पड़ताल के बाद अगर ये पाया गया कि इसके कोई साइड इफेक्ट्स नहीं होंगे। केवल तभी इसे मंजूरी दी जा सकेगी। लेकिन हिमाचल सरकार और इस तरह के रसायन बनाने वाली एजेंसियों की ओर से तो हिमाचल में सेब की फसल पर ऐसे रसायनों के इस्तेमाल को लेकर मंजूरी तक नहीं मांगी गई है।