हिमाचल प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष नेगी निगम भंडारी ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को जंगी- थोपन- पवारी के स्थानीय निवासियों की इच्छाओं के विरुद्ध पनबिजली परियोजना के बलपूर्वक निर्माण पर अपनी निराशा व्यक्त करने हेतु एक पत्र लिखा है। निगम भंडारी ने कहा कि कुछ समय पूर्व हम सभी ने उत्तर भारत के राज्य उतराखंड में दर्दनाक प्राकृतिक आपदा देखी जो 200 से अधिक लोगों की मृत्यु का कारण बनी। लगभग 2 वर्ष पूर्व रैनी गांव के निवासियों ने उत्तराखंड उच्च न्यायलय को आगाह किया था कि ऋषि गंगा जल विद्युत परियोजना के निर्माण से उन्हें भारी नुक़सान हो सकता है और देखते ही देखते 7 फ़रवरी को वहां के स्थानीय निवासी विनाशकारी आपदा के ग्रास बन गए है।
उन्होंने कहा कि आज किन्नौर की जनता उसी डर से जूझ रही है। उनका मानना है कि अगर प्रकृति से इसी तरह से छेड़छाड़ होती रही तो अगली आपदा किन्नौर में ही आएगी। नेगी ने कहा कि हमारे राज्य की 30 से अधिक पनबिजली परियोजनाएं किन्नौर जिले में स्थित है और इस कारण किन्नौर वासीयों के मन में निरंतर प्राकृतिक आपदा का भय बना रहता है। हाल ही में हुई किन्नौर की असमय बर्फबारी किन्नौर के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। उन्होंने ने कहा कि मेरा मानना है कि यह प्रकृति के साथ की गई अनावश्यक छेड़ खानी का परिणाम है। जिसके परिणाम स्वरूप किसानों की फसलें शीन हो चुकी हैं और कई प्राकृतिक आपदाएं दस्तक देती नज़र आ रही हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में पनबिजली परियोजनाओं के तहत किन्नौर कई घटनाओं का साक्षी रह चुका है। इन पनबिजली परियोजनाओं ने उस शांति को भंग कर दिया है जिसके साथ यहां के मूल निवासी कभी कहा करते थे कि इन परियोजनाओं के निर्माण के बाद से लोगों में दुर्घटना, भूस्खलन, प्रदूषण, कम बर्फ़बारी व वर्षा और गर्मियों में बढ़ते तापमान जैसी कई समस्याओ का भय बना रहता है और इन परियोजनाओं ने इस स्वर्ग जैसी भूमि को भय के अंधकार में धकेल दिया है।
नेगी ने कहा कि अधिकांश पनबिजली परियोजनाएं नदी से संचालित होती है और यह माना जाता है कि यह कम पर्यावरणीय लागत है। नदी के प्रवाह को सुरंगों के माध्यम से ऊंचाई से टरबाइन पर गिराया जाता है। सुरंगो के लिए किए जा रहे विस्फोट के कारण भौगोलिक रूप से नाज़ुक किन्नौर ज़िले में भूस्खलन को प्रेरित करता है। रेतीली मिट्टी और विरल वनस्पति पूरे ज़िले में भूस्खलन का अत्यधिक ख़तरा पैदा करती है। उन्होंने कहा कि भूस्खलन खेतों को भी नुक़सान पहुंचता है सड़कों को अवरूद्ध करता है और जल स्रोतों के सूखने का भी कारण बनती है। विस्फोटों से इमारतों की नींव पर भी असर पड़ता है और पिछले कुछ वर्षों में किंनौर जिले के सैंकड़ों भवन व घरों में मरम्मत ना की जा सकने वाली दरारें देखी गई है।
उन्होंने कहा कि परियोजना स्थल पर वनों की कटाई व जल स्त्रोत का विचलन स्थानीय पर्यावरण और जैव विविधता को और प्रभावित करता है। पहले लोग इस आपदा से अनजान थे जो पनबिजली परियोजनाएं अपने साथ लेकर आती है। लेकिन आज हम जानते है कि प्रकृति के साथ खेलने का क्या परिणाम हो सकता है। अगर आज इसे नहीं रोका गया तो जंगी-थोपन-पवारी परियोजना एक आपदा साबित हो सकती है जिससे किनौर के लोग लंबे समय तक जूझते व पीड़ित रहेंगे। नेगी ने कहा कि इस कारण मैं आपके कार्यालय से इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध करता हूं और उक्त परियोजना के (कार्य) निर्माण को तुरंत रोक कर किनौर जिले के लोगों को आवश्यक राहत प्रदान करने का निवेदन करता हूं|