फतेहपुर में उपचुनाव को लेकर सियासी माहौल गर्मा गया है। यहां जब से स्व. सुजान सिंह पाठानिया के बेटे भवानी पठानिया का नाम टिकट की दौड़ में आगे आया है तब से यहां कांग्रेस पार्टी धड़ों में बंट गई है। कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ता नेता लगातार भवानी पठानिया को टिकट देने का विरोध कर रहे हैं, जिसके चलते टिकट आवंटन को लेकर हाइकमान की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। हाइकमान भी इस कशमकश में डटा है कि किसे उम्मीदवार बनाया जाए?
यहां जिस तरह से पुराने कार्यकर्ता मोर्चा खोले हुए हैं ऐसे में भवानी पठानिया पर दांव खेलना कांग्रेस हाईकमान को भारी पड़ सकता है, यह हम नहीं बल्कि आंकड़े कह रहे हैं। अगर इतिहास के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो 2003 में जब कांग्रेस में नशवार सिंह ने टिकट मांगा था और हाईकमान के सामने अपना दमखम दिखाया था। उस समय नशवार सिंह का नाम ही टिकट के लिए सबसे आगे था। लेकिन बाद में सुजान सिंह पाठानिया का अंतिम चुनाव मानकर उन्हें यहां से टिकट दिया गया जिसका नतीजा ये हुआ की उन्हें चुनाव में हार मिली।
अब 2003 की तरह एक बार फिर नशवार सिंह सहित कई नेता भवानी पठानिया को टिकट देने के विरोध में हैं। उन्होंने दो दिन पहले ही फतेहपुर में कार्यकर्ता सम्मेलन कर दो टूक कही था कि अगर अगर पार्टी का काम न करने वाले किसी भी नेता को टिकट दिया गया तो उनमें से कोई निर्दलीय चुनाव लड़ेगा। हालांकि कांग्रेस प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष ने विरोधी धड़े को इस तरह से कार्यकर्ताओं का सम्मेलन न करने का आग्रह भी किया था। लेकिन बावजूद इसके नेताओं ने कार्यकर्ताओं के बीच जाकर भवानी पठानिया का विरोध किया। ऐसे में अब देखना ये होगा की हाईकमान किसे यहां से अपना प्रत्याशी बनाता है।