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पहाड़ दरकने के पीछे क्या हैं असली कारण, सरकार यह जानने के लिए नहीं करवा पाई सर्वेक्षण

डेस्क |

हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ सालों से पहाड़ों के दरकने का सिलसिला जारी है। पहाड़ों के दरकने और इससे होने वाले हादसों में अब तक कई लोगों की जान जा चुकी है। किन्नौर जिला में 18 दिनों के भीतर पहाड़ दरकने की दो घटनाएं समाने आ चुकी हैं जिसमें कई लोगों की जान चली गई है। प्रदेश में एक के बाद एक पहाड़ों के दरकने की घटनाएं सामने आ रहीं है लेकिन सरकार ने अभी तक पहाड़ों के दरकने के पीछे क्या कारण हैं इसका सर्वेक्षण नहीं करवाया और न ही पहाड़ों को दरकने से रोकने के लिए कोई खास योजना तैयार की है।

प्रदेश में आपदा प्रबंधन के नाम पर हर साल मोटी रकम खर्च की जा रही है। केंद्र सरकार से हर साल राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष के तहत राज्य सरकार को 90:10 के अनुपात में बजट मिलता है। मौजूदा वित्त वर्ष में हिमाचल को एसडीआरएफ के तहत 454 करोड़ का बजट आया था। इस एसडीआरएफ बजट को केंद्र सरकार की और से घोषित 33 आपदाओं में से 25 आपदाओं पर खर्च किया जाता है लेकिन इसमें सर्वेक्षण करना कहीं भी शामिल नहीं है। 

हालांकि सरकार के नुमाइंदे हादसों के बाद मुआयना करने जरूर जाते हैं। मृतकों के परिजनों के लिए मुआबजा एलान भी कर आते हैं। लेकिन हादसों के पीछे असल वजह को जाने बिना कुछ दिनों में सबकुछ भूल जाते हैं। लेकिन आज फिर से हम आपको पिछले कुछ हादसों की याद दिलाते हैं जिन्होंने पूरे देश को हिला दिया था।

25 जुलाई को किन्नौर जिले के बटसेरी में पहाड़ टूटने से नौ सैलानियों की मौत हो गई। 12 जुलाई 2021 को कांगड़ा जिले के शाहपुर के रुलेहड़ गांव में भूस्खलन से 10 लोग मौत के मुंह मे समा गए। 12 अगस्त 2017 पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोटरोपी में भूस्खलन में 49 की जान चली गई। 23 जुलाई 2015 को चट्टान गिरने से बस अनियंत्रित होकर पार्वती नदी में गिरी, 23 लोगों की मौत हो गई। 18 अगस्त 2015 को मणिकर्ण के ऐतिहासिक गुरुद्वारा में चट्टान गिरी, आठ की मौत हो गई। 18 अगस्त 2010 मंडी जिले के बल्ह के हटनाला में भूस्खलन से एक ट्रक खाई में जा गिरा 45 लोगों की मौत हो गई। 30 जुलाई,2021 सिरमौर जिला के पांवटा शिलाई हाटकोटी नेशनल हाईवे का करीब डेढ़ सौ मीटर का हिस्सा बड़वास के समीप पूरी तरह ध्वस्त हो गया।

ये हादसे सिर्फ मृतकों की लाशों पर राजनीति तक सीमित न रहें तो अच्छा है बल्कि ऐसे हादसों से सिख लेने की ज़रूरत है। ताकि भावी पीढ़ियों को हम विनाश की इस लीला से बचा सकें। यदि अब भी व्यवस्था व सरकारें ने चेती तो बहुत देर हो जाएगी और मौत का ऐसा तांडव बद्दस्तूर जारी रहेगा।