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राजीव गांधी ‘आधुनिक भारत के शिल्पकार’

डेस्क |

राजीव गांधी को हमेशा आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में याद रखा जाएगा और ऐसा किया भी क्यों न जाए। उनका ही प्रधानमंत्री कार्यकाल था जिसमें कुछ ऐसे निर्णय लिए गए जिन्होंने पूरे देश की काया-कल्प कर दी। कुछ अच्छे थे तो कुछ बुरे। आइए नजर डालते हैं ऐसे कुछ फैसलों की जिन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखी।

नई शिक्षा नीति 

1981 में साक्षरता देश की साक्षरता दर थी 43 प्रतिशत थी। भारत में बहुत सी योजनाएं इसे सुधरने के लिए शुरू की गयी थी परन्तु सफलता हाथ नहीं लगी थी। 1986 में राजीव गांधी की अध्यक्षता वाली सरकार ने शिक्षा निति लेन का फैसला लिया। इसे पूरी तरह लागु करने में समय लगा पर एक बार जब नवोदय विद्यालय और शिक्षा के निजीकरण होते ही शिक्षा हर छात्र तक पुहंचने लगी। इसका सीधा असर आप इसमें जांच सकते हैं की 1991 से 2011 के बीच साक्षरता दर 52 प्रतिशत से 74 प्रतिशत हो गई है।

सूचना और प्रद्योगिकी क्रांति 

राजीव गांधी से पहले कंप्यूटर सिर्फ वैज्ञानिक कार्यों के लिए ही इस्तेमाल होते थे। उन्हें अपने अमेरिका और इंग्लैंड के दौरों से कंप्यूटर और प्रद्योगिकी की महत्वता का समरण था। उन्होंने 1986 में एम.टी.ऍन.एल की स्थापना की जो की बाद में बी.एस.एन.एल की संरचना करने में एहम भूमिका निभाई। उन्होंने ही हर क्षेत्र में कंप्यूटर का इस्तेमाल जरुरी किया। आज बंगलुरु, हैदराबाद, पुणे जैसे प्रद्योगिकी शहर उनकी ही देन हैं।

धर्म की राजनीति 

शाह बानो केस आज भी देश के हर व्यक्ति के जहन में घूमता है। ट्रिपल तलाक को खत्म करने के उच्च न्यायालय के फैसले को उन्होंने जैसे ही संसद में बदला, हिन्दू समाज ने उन पर तुस्टीकरण की राजनीती का आरोप लगा दिया। हिन्दुओं को संत करने के लिए आनन-फानन में अयोध्या में भगवन राम के मंदिर के बंद पढ़े गेट को खोलने का हुकुम जारी कर दिया। इन दोनों फैसलों ने धर्म की राजनीति को भारत के लोकतंत्र में सामने लाकर खड़ा कर दिया। 

श्रीलंका में भारतीय फौज भेजना 

राजीव गांधी इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने विदेश में भारत की फौज को किसी युद्ध में हस्तक्षेप के लिए भेजा। भारतीय फौज ने श्रीलंका में उतरते ही विकट परिस्थितियों का सामना किया परन्तु उन्होंने ने एल.टी.टी.इ की कमर तोड़ दी। भारत और श्रीलंका इन सफलताओं का जायदा फायदा उठा नहीं पाए। परन्तु भारतीय सेना और अधिक ताकतवर होकर उभरी और जम्मू-कश्मीर और पूर्व उत्तर में आंतकवाद को सयम में करने में कामयाब रही।

शायद यही फैसला था जिसने भारत के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री को 1991 में पेदेमुर में एक बम धमाके में हमसे छीन लिया।