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क्या डॉक्टर-इंजीनियर बनना है इतना आसान ?, हिमाचल सरकार का फैसला कितना सही ?

डेस्क |

आज कल की शिक्षा प्रणाली की बात की जाए तो बच्चे चाहे जितने शिक्षित हो जाएं लेकिन नौकरी पाने के लिए उन्हें दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ता है। हर मां बाप का सपना होता है कि अगर वो अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसा खर्च कर रहे हैं तो उनके बच्चे को अच्छी नौकरी मिले, लेकिन क्या आज के समय में इतना आसान है कि उनका बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर जैसी नौकरी हासिल कर सके। ये सवाल आज इसलिए हम उठा रहे हैं क्योंकि हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले नौवीं से 12वीं कक्षा के करीब दो लाख विद्यार्थियों को हर हफ्ते शनिवार और रविवार को डॉक्टर और इंजीनियर बनाने की कोचिंग दी जाएगी। 18 सितंबर से नौवीं से 12वीं के विद्यार्थियों को मोबाइल पर शिक्षक एक लिंक भेजेंगे। यू-ट्यूब के इस लिंक के माध्यम से विद्यार्थी नीट और जेईई की कोचिंग ले सकेंगे। सरकार ने विद्यार्थियों को कोचिंग देने के लिए स्वर्ण जयंती विद्यार्थी अनुशिक्षण योजना शुरू की है।

एक स्टडी के मुताबिक 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ, तब देश में केवल 44 इंजीनियरिंग कॉलेज थे। इंजीनियरिंग-डॉक्टर का ट्रेंड 1990 के दशक में शुरू हुआ, जब देश के बहुत सारे माता पिता का एक ही सपना होता था, अपने बच्चे को इंजीनियर या फिर डॉक्टर बनाना और कई माता पिता तो आज भी ये सपना देखते हैं।

आज भी देश के 50 प्रतिशत इंजीनियरिंग कॉलेज बच्चों को नौकरी देने में असफल हैं। आज भी देश में लाखों बच्चे इंजीनियरिंग कर रहे हैं लेकिन इंजीनियर बनने का सपना पहले जैसा नहीं है। जबकि पहले कई युवाओं के लिए सिविल इंजीनियरिंग बिल्डिंग निर्माण से ज्यादा, देश निर्माण हुआ करती थी।

इंजीनियर बनने के सपने ने ही भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा इंजीनियर पैदा करने वाला देश बनाया। आज दुनिया के हर 100 में से 25 इंजीनियर भारत के ही हैं। Microsoft, Google और IBM के CEO भारतीय मूल के ही हैं और ये सभी इंजीनियर हैं। 1990 और 2000 के दशक में इंजीनियर बनने का जो सपना सबसे आम हुआ करता था, वो आज धूमिल पड़ा है। इंजीनियरिंग के सपनों का कारोबार करने वाले लोगों ने देश में प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज तो खोले लेकिन ये नौकरियां नहीं दे पाए।

अब सवाल ये है कि दो साल से पहले ही देश प्रदेश कोरोना की मार झेल रहे हैं जिससे शिक्षा व्यवस्था पहले से चौपट है, स्कूल खुल नहीं पा रहे हैं, बच्चे घरों में ऑनलाइन पढ़ाई करके परेशान हो चुके हैं। तो क्या ऐसे वक्त में हिमाचल सरकार की ये पहल बच्चों के लिए कितना फायदेमंद होगा?। क्या सरकार को बड़ी बड़ी घोषणाएं करने से पहले शिक्षा प्रणाली पर ध्यान नहीं देना चाहिए?।