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मां ज्वालाजी की जोत जलने के पीछे का क्या है रहस्य? जानें

डेस्क |

हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के जवालामुखी में सदियों से मां जवाला की ज्योत जलती आ रही है। इस ज्योत के जलने के पीछे क्या कारण है यह आज तक कोई नहीं जान पाया। कई विज्ञानिक आए और चले गए कोई भी इस बात का पता नहीं लगा पाया कि मां ज्वाला की जोत कैसे चल रही है। कई बार इस जोत को बुझाने का भी प्रयास किया गया।

अकबर ने इस जोत को बुझाने के लिए जोत पर लोहे का तवा चढ़ाया था लेकिन मां ज्वाला ने उसे भी अपनी जोत की तपिश के साथ खंडित कर दिया और वह अष्टधातु में परिवर्तित हो गया। अकबर का बस कुछ नहीं चला तो उसने मां ज्वाला पर नहर गिराई लेकिन मां ज्वाला ने उसे भी तोड़ कर रख दिया और तब से लेकर आज तक मां ज्वाला की जोत निरंतर जल रही है। इस जोत के जलने के पीछे का रहस्य आज दिन तक रहस्य बना हुआ है और ये जोत कैसे जलती है यह आज दिन तक कोई नहीं जान पाया।

मां ज्वाला देवी में दर्शनों के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूरी भी करते हैं। नवरात्रों में मां ज्वाला का विशेष महत्व है और 9 दिन लगातार मां ज्वाला की पूजा अर्चना की जाती है। बाहरी राज्यों से लोग मां ज्वाला देवी के दर्शन करने के लिए आते हैं और यहां से जलती हुई जोत को अपने घर ले जाते हैं, जिसका 9 दिन विधिविधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है और उसके बाद विदाई होती है।

यही नहीं कहा जाता है कि यहां पर माता की जीभ आ गिरी हुई है और वही जीभ जलती हुई जोत में अपने भक्तों को दर्शन देती है। नवरात्रों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां ज्वाला देवी के दर्शन करने के लिए आते हैं। कहा जाता है कि मां के दर्शन करने से ही भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है और कई भक्तों को मां पर इतना विश्वास है कि वह हर छठे महीने मां के दर्शन करने के लिए ज्वाला देवी आते हैं।

मां ज्वाला देवी की आरती सुबह 6:00 बजे और शाम को 7:00 बजे की जाती है। इसके बाद मां को विधिविधान के साथ शयनकक्ष में सुलाया जाता है। ज्वाला देवी जलती हुई ज्योतियां आज भी यह प्रमाणित करती हैं कि उनको बुझाने का प्रयास असफल ही रहेगा। श्रद्धालुओं का कहना है कि मां के दर्शन साक्षात मां के दरबार में होते हैं और मां से जो भी मनोकामना मांगी जाए पूरी होती है।