हिमाचल प्रदेश की एक मूक-बधिर दुष्कर्म पीड़िता को सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे के तौर पर एकमुश्त 15 लाख रुपए प्रदान करने का आदेश दिया है। जबकि, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह पीड़िता को जीवनभर 30 हजार रुपए प्रतिमाह अदा करे।
इस दुष्कर्म पीड़िता ने एक बच्ची को जन्म दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह शुरूआत में हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता था, लेकिन बाद में लगा कि पीड़िता की दिव्यांगता के मद्देनजर मुआवजे के भुगतान की कोई उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में दुष्कर्म पीड़िता के नाम पर यह धनराशि जमा करा दे, ताकि पीड़िता के माता-पिता उस पर अर्जित ब्याज को प्रतिमाह निकाल सके।
अदालत ने ऐसे कदम उठाने के भी निर्देश दिए जिससे समय-समय पर यह सुनिश्चित किया जा सके कि उक्त राशि वास्तव में पीड़िता के कल्याण के लिए ही खर्च की जा रही है। बता दें कि हाई कोर्ट के फैसले को हिमाचल प्रदेश सरकार ने चुनौती दी थी।
मूक-बधिर होने का उठाया फायदा
हिमाचल सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि ऐसे मामलों में यह सर्वाधिक मुआवजे की योजना के विपरीत है, जिसके तहत पीड़िता की मौत या 80 फीसदी दिव्यांगता की स्थिति में 1 लाख रुपये मुआवजा दिया जाता है।
इस मामले में सत्र अदालत हमीरपुर ने आरोपी रजनीश उर्फ विक्की को 10 साल की कैद और 20,000 रुपये का जुर्माने की सजा सुनाई थी। FIR में पीड़िता के परिवार वालों ने कहा था कि अभियुक्त ने पीड़िता के मूक-बधिर होने का फायदा उठा कर उसका कई बार रेप किया और उसे गर्भवती बना दिया।