पिछले 70 सालों से मंडी लोकसभा के जितने भी चुनाव या उपचुनाव हुए हैं उसके साथ एक रोचक क्रम जुड़ा हुआ है कि मंडी से जो भी सांसद चुना गया वह कभी विपक्ष में नहीं बैठा। 1952 से लेकर 2019 तक यह रोचक क्रम जारी रहा है। भले ही 1996 में जब पंडित सुख राम जीते थे तो उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी थी मगर वह महज 13 ही दिन चली और फिर से कांग्रेस के समर्थन वाली सरकार बन गई थी।
मंडी लोकसभा सीट की इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो 1952 में यहां से दो सदस्य चुने जाते थे और इसका नाम महासू था। उस समय गोपी राम व रानी अमृतमौर सांसद बनी थी। 1957 में मंडी के राजा जोगिंदरसेन, 1962 और 1967 में सुकेत के राजा ललित सेन 1971 में वीरभद्र सिंह चुनाव जीते। इन सब के कार्यकाल में केंद्र में कांग्रेस की सरकारें बनीं। 1977 में ठाकुर गंगा सिंह जनता पार्टी के टिकट पर जीते और केंद्र जनता पार्टीं की सरकार बनी। 1980 में फिर वीरभद्र सिंह जीते औऱ केंद्र में कांग्रेस ने सत्ता हासिल की।
1984 में पंडित सुख राम की जीत हुई वह इंदिरा गांधी व राजीव गांधी की सरकार में शामिल हुए। 1989 में जब यहां से भाजपा के राजा महेश्वर सिंह जीते तो केंद्र में भाजपा के समर्थन से वीपी सिंह की सरकार बनी। 1991 में पंडित सुख राम जीते और संचार मंत्री बने। 1996 में फिर से पंडित सुख राम जीते और केंद्र में कांग्रेस के समर्थन से देवगौड़ा की सरकार बनी। 1998 और 1999 में भाजपा के महेश्वर सिंह सांसद बने जबकि केंद्र में भाजपा नीत अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी।
2004 में कांग्रेस के टिकट पर प्रतिभा सिंह ने जीत हासिल की जबकि 2009 में वीरभद्र सिंह सांसद चुने गए। दोनों ही बार कांग्रेस की सरकारें थी। वीरभद्र सिंह इसमें मंत्री भी बने। 2013 में हुए उपचुनाव में प्रतिभा सिंह चुनी गई तब भी केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। 2014 व 2019 में भाजपा के रामस्वरूप शर्मा सांसद चुने गए । इस दौरान केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार चल रही है। अब फिर से मंडी का उपचुनाव हो रहा है। चर्चा यही है कि मंडी संसदीय क्षेत्र के लोग अपने रोचक क्रम को बरकरार रखेंगे कि 70 साल से चली आ रही परंपरा टूट जाएगी। मंगलवार को इसका पटाक्षेप हो जाएगा।