राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने वर्तमान परिपेक्ष्य में शून्य लागत प्राकृतिक कृषि की उपयोगिता पर बल देते हुए कहा कि इस पद्धति से जहां किसानों को बचाया जा सकता है। वहीं, जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने, उत्पादन कई गुना करने, पानी की कम खपत और राष्ट्र को उन्नति की ओर ले जाया जा सकता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ऐसे उत्पाद सहायक हैं। राज्यपाल-लोकसभा के बीपीएसटी मैन लेक्चर हॉल में जैविक कृषि पर कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान राज्यपाल ने सांसदों के सवालों के भी जवाब दिए।
राज्यपाल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में उन्होंने समाजिक सरोकार के 6 विषयों को लेकर अभियान चलाए हैं, जिन में प्राकृतिक कृषि भी शामिल है। उन्होंने कहा कि आज देश की जनसंख्या करीब 130 करोड़ है और खाद्यान्न उत्पादन करीब 27.5 करोड़ टन और वर्ष 2050 तक जब हमारी जनसंख्या 170 करोड़ हो जाएगी तो खाद्यान्न उत्पादन 35 करोड़ टन करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में दो प्रकार की कृषि की जा रही है, रासायनिक खेती और जैविक खेती। लेकिन, ये सिद्ध हो चुका है कि दोनों ही प्रकार की खेती हमारे लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकती।
रासायनिक खेती से हम ले रहे स्लो-पॉइजन
रसायनिक खेती को अपनाकर भूमि जल दूषित हुआ है, उत्पाद के माध्यम से हम स्लो पॉइजन ले रहे हैं, उत्पादकता भी घटी है और किसानों का खर्चा बढ़ा है। दूसरी ओर जैविक खेती से पहले तीन सालों तक उत्पादन कम होता है, पोषक तत्व जमीन से खीचता है और व्यवहारिकता में अपनाना कठिन है।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही है और उस दिशा में प्रयास भी चल रहा है। लेकिन,इस लक्ष्य को हम शून्य लागत प्राकृतिक कृषि से प्राप्त कर सकते है। इस पद्धति के अनुसार एक देसी गाय से 30 एकड़ भूमि पर कृषि की जा सकती है। इससे 70 फीसदी पानी की भी बचत होगी।