स्वच्छता सर्वेक्षण 2021 में प्रदेश की राजधानी शिमला शहर की रैंकिंग गिरने पर माकपा ने प्रदेश सरकार और नगर निगम शिमला की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। माकपा ने प्रदेश की भाजपा सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि शिमला शहर की रैंकिंग 65वें स्थान से 102वें स्थान पर पहुंचना प्रदेश सरकार और नगर निगम की लचर कार्यप्रणाली का ही परिणाम है। माकपा ने कहा है कि साल 2016 में जब भाजपा सत्ता में नहीं थी तो उस समय स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग 26वें स्थान पर थी ।
माकपा ने कहा कि जब से भाजपा सरकार और नगर निगम सत्तासीन हुई है तबसे ही प्रदेश में निजीकरण की नीतियां तेजी से लागू कर रही है और सरकार ने सभी सेवाओं जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली, सफाई जैसी जनता की मूलभूत आवश्यकताओं को भी निजी हाथों में सौंपने का कार्य किया है। सरकार ने सभी विभागों में नियमित भर्तियों पर रोक लगा रखी है और आउटसोर्स ठेके पर तदर्थ आधार पर भर्तियां की जा रही है। इनमें ठेका प्रथा को बढ़ावा दिया जा रहा है।
अधिकांश भर्तियां आउटसोर्स और अंशकालिक रूप से भर्ती की जा रही है। इसमें भी भाजपा चहते ठेकेदारों की कंपनियों को फायदा देने के लिए कार्य कर रही है। आज केवल नगर निगम शिमला में ही 950 से अधिक सफ़ाई और अन्य कर्मियों के पद खाली है और सरकार इनको भरने के लिए कोई भी कार्य नहीं कर रही है। एक ओर इन निजीकरण की नीतियों से जनता पर अधिक टैक्स वसूली कर जनता पर और अधिक आर्थिक बोझ डाला जा रहा है और दूसरी ओर इन कर्मियों का भी ठेकेदार और कंपनियों का शोषण किया जा रहा है।
भाजपा शासित नगर निगम शिमला ने पिछले साढ़े चार वर्षों में जनता पर निरन्तर टैक्स बढ़ाने का ही कार्य किया है। पानी की दरों, प्रॉपर्टी टैक्स, कूड़ा उठाने की फीस, दुकानों के किराए और अन्य सेवाओं की दरों में निरंतर वृद्धि की जा रही है। इन साढ़े चार वर्षों में पानी की दरों, प्रॉपर्टी टैक्स, दुकानों के किराए में वृद्धि के साथ केवल कूड़ा उठाने की फीस में ही इस दौरान दोगुना से अधिक वृद्धि की गई है। एक ओर जनता पर आर्थिक बोझ डाला जा रहा है दूसरी ओर सेवाओं में कटौती से इसके स्तर में गिरावट आ रही है। जिसका परिणाम स्वच्छता सर्वेक्षण में निरन्तर गिरती रैंकिंग भी है और इसकी सीधी जिम्मेदारी भाजपा की सरकार और नगर निगम की है। विशेष रूप से शिमला शहर के विधायक जो शहरी विकास मंत्री भी है इनकी इसकी बड़ी जिम्मेदारी बनती है।