प्रदेश में सामान्य वर्ग आयोग के गठन को लेकर प्रदेश सरकार की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रही। अब हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग संयुक्त संघर्ष मोर्चा सरकार पर सामान्य वर्ग आयोग की आड़ में प्रदेश की शांति भंग करने का आरोप लगाए हैं।
संयुक्त संघर्ष मोर्चा के प्रवक्ता प्रेम धरैक ने कहा कि हिमाचल में बढ़ते जातीय तनाव और दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए मोर्चा बनाया गया। सामान्य वर्ग आयोग की आड़ में प्रदेश में शांति भंग करने की कोशिश की जा रही है। मोर्चा स्वर्ण आयोग के गठन का विरोध करता है। 80 फ़ीसदी सरकारी नौकरी सामान्य वर्ग के पास है। इस पर कोई आवाज़ नहीं उठाता है। सवर्ण और दलित के बीच खाई कम करने के लिए दिए गए आरक्षण पर हाय तौबा मची हुई है। जातिवाद के बंधन ख़त्म नहीं हो पाए हैं। ऐसे में आरक्षण ख़त्म करने की मांग बेमानी है।
उन्होंने बताया कि अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण न के बराबर है। इन आरक्षित पदों में भी लंबा बैकलॉग चला हुआ है। कई पदों पर योग्यता के अभाव में पदों को ख़त्म कर दिया जाता है। उच्च पदों पर 99 फ़ीसदी आरक्षित पहली बार पहुंचते हैं। पदोन्नति में आरक्षण तक हिमाचल सरकार नहीं दे रही है। आरक्षण को आर्थिक आधार पर तोलना गलत है। क्योंकि आरक्षण पिछड़े और समानता लाने के लिए है। आज तर्क दिया जा रहा है कि जातीय आधार पर आरक्षण न देकर आर्थिक आधार पर होना चाहिए। लेकिन आज भी जातीय भेदभाव की दीवारें टूट नही पाई है।
हिमाचल में आज भी दलितों को मंदिरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता है। एट्रोसिटी के मामलों में कमी नहीं हो रही है। इन मामलों में एफआईआर तक नहीं होती है। उल्टा आरक्षण को ख़त्म करने का अभियान चलाकर समाज में खाई पैदा करने की कोशिश की जा रही है। असमानता, बंटाधार व नाकामी से ध्यान भटकाने के लिए सोची समझी साजिश के तहत सवर्ण आयोग का गठन किया जा रहा है। इसका कोई संवेदनशील आधार नहीं है। सरकार सवर्ण आयोग के गठन के निर्णय को वापिस ले और आरक्षण और एससी एसटी उप-योजना को लागू करे अन्यथा ये वर्ग भाजपा का विरोध करेंगे।