हिमाचल प्रदेश विश्व विद्यालय में बीए के छठे समेस्टर में पढ़ाई जा रही आत्मकथा जूठन का मुद्दा बढ़ता जा रहा है। इस आत्मकथा के पढ़ाये जाने से प्रदेश के कॉलेजों में पढ़ रहे दलित छात्रों के बीच आपसी मतभेद बढ़ते जा रहे है। इस आत्मकथा को पाठ्यक्रम से हटाने के लिए एक प्रतिनिधी मंडल ने संजय शर्मा की अगुवाई में उपायुक्त काँगड़ा के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को ज्ञापन भेजा है।
संजय शर्मा ने बताया कि सन 1965 में क्रांतिकारी एवं साहित्यकार ओम प्रकाश वाल्मीकि ने आत्मकथा जूठन प्रकशित हुई और जिसका अंग्रेजी अनुवाद अरुण प्रभा मुखर्जी ने किया है और यह अनुवादित किताब साल 2011 से रूसा के तहत बच्चों को पढ़ाई जा रही है। उन्होंने कहा कि छठे समेस्टर में जूठन की विस्तारपूर्वक पढ़ाई करवाई जाती है और वार्षिक परीक्षा में 40 अंक के प्रश्न भी पूछे जाते है।
विद्यार्थियों में पैदा हो रहा है मतभेद
उन्होंने कहा कि जूठन ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तिगत अनुभवों का संग्रह है जो की दशकों पूर्व देश में अलग अलग जातियों के बीच संबंधों और छुआछूत पर घटित घटनाओं पर आधारित है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में ऐसा कुछ भी नहीं है सभी को एक समान नजर से देखा जाता है। ऐसे में कॉलेज के विद्यार्थियों को जूठन पढ़ाए जाने से दो जातियों के बच्चों के बीच मतभेद पैदा हो रहा है। इस पाठ्यक्रम के पढ़ने से छात्रों के बीच न केवल खाई बन रही है बल्कि एक दूसरे के प्रति जातिगत आधार पर द्वेष की भावना पैदा हो रही है।
किताब में है कई जातिसूचक शब्द
इतना ही नहीं जूठन में कई ऐसे जाति सूचक शब्द है जिन पर काफी समय पहले ही प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करने पर न्यायालय को दंड देने का भी अधिकार दिया गया है। अंग्रेजी विषय पढ़ाने वाले प्राध्यापकों के अनुसार कक्षा में जूठन पढ़ाने पर कई बार दो जातियों के बच्चो के बीच आपसी दोस्ती भी टूटी है और कई बार दूसरे सहपाठी को घृणा की दृष्टि से देखा गया है।