स्वर कोकिला एवं भारत रत्न स्व. लता मंगेशकर ने पहाड़ के खूबसूरत नजारों में हमेशा चार चांद लगाए थे. चाहे श्वेत-धवल हिम के मुकुट पहने शीश ताने गर्वीले पहाड़ हों, झर-झर बहते झरने हों, कल-कल बहती नदी हो, बांह फैलाते देवदार हों या फिर सिकुड़ता-सहमता चीड़ हो, वी का आकार बनाती गहरी घाटियां हों उनके गीत उनमें खूबसूरती टांक देते थे.
याद करिए फिल्म राम तेरी गंगा मैली का वह गीत जिसमें वह गाती हैं … हुस्न पहाड़ों का, ओ साहिबा/ हुस्न पहाड़ों का/ क्या कहना की बारों महीने/ यहां मौसम जाड़े का/ क्या कहना की बारों महीने/ यहां मौसम जाड़े का …लता के गाए गीत से पहाड़ की पूरी जिंदगी साकार हो उठती है. इस गीत ने नायिका के साथ ही पहाड़ की खूबसूरती में इजाफा कर दिया है.
लता मंगेशखर की आवाज में प्रेम पर्बत का वह गीत सुन लीजिए इसकी तो धुन भी पहाड़ी है…ये दिल और उनकी निगाहों के साये….पहाड़ों को चंचल किरन चूमती है….हवा हर नदी का बदन चूमती है. चाहे मधुमती का गीत हो आजा रे परदेसी….मैं तो कबसे खड़ी इस पार कि अंखियां थक गईं पंथ निहार में पूरा पहाड़ ही दिखता है. गढ़वाली फिल्म रैबार में भी एक गीत गाकर लता मंगेशकर ने पहाड़ को आशीष दिया था.
मधुमति फिल्म के लिए लता ने पांच गीत गाए और इन गीतों की शूटिंग नैनीताल के निकट भवाली, घोड़ाखाल, गेठिया आदि क्षेत्रों में हुई थी. ये सभी गीत बेहद लोकप्रिय हुए थे और आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं. इनमें से एक गीत आजा रे परदेसी के लिए लता को 1958 का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था. आजादी के बाद कुमाऊं में फिल्मायी गई यह पहली फिल्म थी.
नृत्य सम्राट उदयशंकर ने ‘दैय्या रे दैय्या’ में पहाड़ी घसियारी नृत्य के कुछ अंश शामिल कराए थे. प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. अजय रावत की पुस्तक कल्चरल हिस्ट्री ऑफ उतराखंड में इस बात का उल्लेख किया गया है. दैय्या रे दैय्या नृत्य की कॉस्ट्यूम डिजाइन वैजयंती माला की मां ने की थी. नृत्य में कुमाऊंनी स्टाइल के चांदी के गहने प्रयुक्त किए गए थे, जो खुद वैजयंती माला के थे. बाद में प्रसिद्ध कोरियोग्राफर बनीं सरोज खान तब इस गाने में बैकग्राउंड डांसर रही थीं. इस फिल्म पर आधारित कई अन्य फिल्में कुदरत, बीस साल बाद, और ओम शांति ओम भी बनीं.