हिमाचल प्रदेश में कुल 3226 पंचायते हैं और हर साल ये पंचायतें कुल 40 लाख बजट खर्च करती हैं। इन 40 लाख में से हर साल 10 लाख का रेता-बजरी इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन, पंचायतों को इस रेता बजरी की खबर तक नहीं है कि आखिरकार ये कहां से आ रहा है। ना ही तो खरीदे गए कर्शर का कोई बिल होता है औऱ जो एक एम फार्म बनता है वे भी किसी भी पंचायत के पास नहीं है।
वहीं, इस मामले में पंचायत अधिकारियों ने कुछ भी कहने से इनकार किया है और पंचायत प्रधान ने भी साफ कर दिया है कि हमारे पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। प्रधान ने कहा कि कर्शर खरीदने के लिए सरकार ने कोई आदेश जारी नहीं किए हैं कि कोई रिकॉर्ड या फार्म चाहिए होगा।अधिकारियों का अपना तर्क था और उन्होंने कहा कि पंचायत खुद एक्सेक्यूटिंग एजेंसी हैं। ये सब वो अपने सत्तर पर ही करते हैं। ब्लॉक अधिकारी और पंचायत अफसर भी मामले में कार्यालय से डीलिंग हैंड कन्नी काटते नज़र आये और सारा मामला प्रधानों पर ही छोड़ा गया।
यदि ऐसा सच में है तो यह कहना गलत नहीं होगा कि पंचायतों में भी अवैध खनन का धंधा हो रहा है। बिना किसी टैक्स और कागज के पंचायतों के प्रधान बड़ा घोटाला करते नज़र आ रहे हैं। इसी बीच बड़ा सवाल उन ऑडिट एजेंसीस़ पर भी खड़ा होता है जो पंचायतों के करोड़ों कामो का ऑडिट करते हैं। उधर, सरकार भी इस पर आंखें बंद किये हुए है या फिर इसे देखना नहीं चाहती।